आतंक
कौन धर्म कहता ,बेगुनाहों को मारा जाए ! हश्र देख धरा का ,खुदा भी यह दोहराए ! ऐसे कर्म करके
Read Moreमाना मुट्ठी से रेत की तरह फिसलता जाता है यह वक्त ! चाहकर भी कोई नहीं वापिस पा सकता है
Read More१ करके खता भी हर बार तुम खफा होते रहे , तेरी राहों में चिरागे रोशनी फिर भी ना हमने
Read More