अनकही सच्चाई
हर तरफ सियासत ही सियासत दिखी | क्यूं चाहकर भी सच्चाई की कीमत पड़ गई फीकी | हो गए शामिल
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Read Moreगरीब अब भी फुटपाथ पर सोता है| भूख से जाने कितनो का दम निकलता है | पर मेरा देश तो
Read Moreआँसुओ को आँखों से छलक जाने दो | ना छुपाओ आँखों मे उन्हें बह जाने दो | रह गए जो
Read Moreरात के आगोश मे चाँदनी सिमटती गई , चाँद सँग यूँही ठिठोली सी करती रही | आसमाँ को भी गुमाँ
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