Author: *कुमार गौरव अजीतेन्दु

कविता

अबकी बजने दे रणभेरी (आल्हा छंद)

धूल उड़ी फिर समरांगन की, भारतमाता रही पुकार। भगवाबाना धारो वीरों, चलों चलें हम शस्त्रागार॥ गुंजित हो जिनके आँगन में,

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राजनीतिसामाजिकहास्य व्यंग्य

एक योनिनिरपेक्ष निवेदन- हास्य

एक सच्चा मच्छर कभी डेंगू-चिकनगुनिया नहीं फैलाता बल्कि वो तो हमारा रक्त चूसकर स्वयं में घुलाते हुए हमसे निकटतम संबंध

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भाषा-साहित्य

छांदसिक शिल्प के कलश में आचार्य संजीव सलिल के नवगीत….

आचार्य संजीव सलिल आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ नें नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा, बी.ई., एम.आई.ई., अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में एम.ए.,

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