“दोहा”
“दोहा” भौंरा घूमे बाग में, खिलते डाली फूल कुदरत की ये वानगी, माली के अनुकूल॥ उड़ने दो इनको सखे, पलती
Read Moreमुक्त काव्य…… सुबह शाम बाग में होती थी चहल पहल सहारे की लकड़ी हाथों में टहल टहल कुछ का दौड़ना
Read Moreआए जाए ऋतु सखी, ऋतु के अपने रंग बिनु ऋतु नहि कदली फरे, लय बिनु नहीं मृदंग लय बिनु नहीं
Read Moreमात्रा भार-22 नजरिया में आ के घेरा गईल माधों ई कइसन बंसुरिया बजा गईल माधों…… देखली सुरतिया संवरिया कन्हाई अंगुली
Read Moreघाट घाट पानी पिया, खड़ी नाव मँझधार हर दिन मांझी बदलता, नई नई पतवार नई नई पतवार, घाट नदियां बहुतेरे
Read Moreशीर्षक – करूणा ,दया, सहानुभूति, मेहरबानी, करम या समानार्थी सहानभूति संवेदना, मानव जीवन सार करम धरम करुणा दया, कब जाये
Read Moreमुक्त रचना……. उम्मीद के दामन दरक रहे थे रात अकेली सरक रही थी काली आँखों में लाली लिए भीगते बिस्तर
Read Moreसल्मस यानि अति गरिब, जिनके पास न घर है न खाने को भरपेट रोटी, खुला आसमान उनकी छत है तो
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