आओ परिवार और दफ़्तरों को सकारात्मक बनायें
एक बार जापान के एक राजा, एक ऐसे सुखी और सन्तुष्ट परिवार के मुखिया से मिलने जाते हैं, जिसके परिवार
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Read Moreमां, जाते जाते एक सलाह और देती हूं, कि बेटे की आशा में किसी संत के पास मत जाना, क्योंकि
Read Moreमां, वे मुझे बातों में फुसलाकर, शादी के वादों में उलझाकर, एक बार प्यार में, और बाद में ब्लेकमेल के
Read Moreयहां तक भी यदि, मैं सुरक्षित पहुँच गई, तो मां, बस में जला दी जाऊंगी, निर्भया की तरह, या दफ्तर
Read Moreवहां से बच भी गई, तो क्या पापा या भैया से तुम, मुझे बचा पाओगी, क्योंकि उनके पक्ष में तो,
Read Moreआवारा कुत्तों या स्कूल में बच भी गई, तो क्या गली के आवारा शोहदों से मुझे, पापा बचा पाएंगे, वह
Read Moreयदि तुम मुझे बचा भी लोगी, तो क्या होगा ? स्कूल की बस में , या स्कूल के किसी कक्ष
Read Moreमां, मैं आ भी जाती दुनिया में, तो बापू के कहने पर, भैया मुझे दसवीं मंजिल से फेंक देते, या
Read More(यह मार्मिक कविता कोख में एक लड़की का अंतिम बयान है.) मां ! तुम कितनी अच्छी हो, तुम दूरदृष्टा हो,
Read Moreयह आश्चर्य और अत्यन्त दुःख की बात है कि अधिकांश उच्च शिक्षित भारतीय नागरिक अपनी परम्पराओं को अवैज्ञानिक और हेय
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