ठूंठ
इक ठूंठ देखता मैं प्रतिदिन पाकघर के झरोखे से। खड़ा-खड़ा मैं सोचा करता, जीवन के हर कोने से।। टीन का
Read Moreजूते जो मुंह पर मारे उनको मत दें, आरक्षण से जो हक काटे उनको मत दें। ऐसा कौन सा धन
Read Moreआरक्षण कंटक हट जाए, हिंद में एकता बढ़ जाए, एक वर्ग ही नहीं है पिछड़ा, हर वर्ग संवर और सज
Read Moreसत्ता जहर है जिसका विष पी, मैं नीलकंठ बन जाऊंगा। “शिव” बनकर “शिव” करूंगा सबका, भस्मासुर को मिटाऊंगा। राजनीति की
Read Moreमित्रों यह कविता मैं 2005 के फरवरी माह के आखिरी सप्ताह में लिखा था। उस समय मैं ग्यरहवीं की परिक्षा
Read Moreइस चित्र को मैने दो भागों में विभाजित किया है, अपनी रचना के माध्यम से यह जानने की कोशिश की
Read Moreतीखे नैन, अदा नखराले, उड़ते गगन में हम मतवाले। पंख खोल हम इतराते थे, रहते सदा साथ दिलवाले।। मैं राजा
Read Moreसाथी चलो चले, खुले गगन के तले। भटके बिना वजह, सबको लगा गले।। घर बार छोड़कर, ममता को तोड़कर। ले
Read Moreसंसद के दोनों सदनों में, नेता चुन-चुन कर पहुंचे जो। हो ह्रदय हीन स्वार्थी सारे, कमियां औरों की गिनते हैं।।
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