कविता

सर्कस की लड़की

मित्रों यह कविता मैं 2005 के फरवरी माह के आखिरी सप्ताह में लिखा था। उस समय मैं ग्यरहवीं की परिक्षा देकर घर वापस लौट रहा था, चौराहे पर पहुँचा तो देखा कि वहां एक लड़की करतब दिखा रही थी। उसके करतब और लोगों की मानसिकता को उस समय मैं अपने पेपर पर लिख लिया था ; आज किसी बात पर यह कविता याद आ गई।
आप सब अपनी पसंद और नापसंद बताकर मेरा उत्साहवर्धन करने की कृपा करें।

।। सर्कस की लड़की।।

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सर्कस की लड़की,
नित सौरभ की मंजरियों सी गदराती जाती,
सर्कस है दिखाती।
समष्टि में जनता को –
तन ढकने को हि तन दिखलाती।
ना जाने दुहिता किसकी,
सर्कस वाले कि तो नहीं लगती,
नित यौवन कि अमराई में,
कोयल बनके कूका करती।
जीवन इसका शिक्षा विहीन,
पर कला में बाला है प्रवीन,
मुख चन्द्र नहीं श्यामल है,
तन रस पूरित मेंघो के सदृश।
कसे बदन को है तड़पाती,
खुद आप ही आप लरजती है।
यहाँ धवल वस्त्र धारी छुप कर,
इस तन की कामना करते हैं,
मौका मिलते ही मसलते हैं,
कलियों को कुचला करते हैं,
इन प्रजापालकों से बचकर,
यह अल्हड़ यौवन तिरती है।।

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।। प्रदीप कुमार तिवारी ।।
करौंदी कला, सुलतानपुर
7537807761

प्रदीप कुमार तिवारी

नाम - प्रदीप कुमार तिवारी। पिता का नाम - श्री दिनेश कुमार तिवारी। माता का नाम - श्रीमती आशा देवी। जन्म स्थान - दलापुर, इलाहाबाद, उत्तर-प्रदेश। शिक्षा - संस्कृत से एम ए। विवाह- 10 जून 2015 में "दीपशिखा से मूल निवासी - करौंदी कला, शुकुलपुर, कादीपुर, सुलतानपुर, उत्तर-प्रदेश। इलाहाबाद मे जन्म हुआ, प्रारम्भिक जीवन नानी के साथ बीता, दसवीं से अपने घर करौंदी कला आ गया, पण्डित श्रीपति मिश्रा महाविद्यालय से स्नातक और संत तुलसीदास महाविद्यालय बरवारीपुर से स्नत्कोतर की शिक्षा प्राप्त की, बचपन से ही साहित्य के प्रति विशेष लगव रहा है। समाज के सभी पहलू पर लिखने की बराबर कोशिस की है। पर देश प्रेम मेरा प्रिय विषय है मैं बेधड़क अपने विचार व्यक्त करता हूं- *शब्द संचयन मेरा पीड़ादायक होगा, पर सुनो सत्य का ही परिचायक होगा।।* और भ्रष्टाचार पर भी अपने विचार साझा करता हूं- *मैं शब्दों से अंगार उड़ाने निकला हूं, जन जन में एहसास जगाने निकला हूं। लूटने वालों को हम उठा-उठा कर पटकें, कर सकते सब ऐसा विश्वास जगाने निकला हूं।।* दो साझा पुस्तके जिसमे से एक "काव्य अंकुर" दूसरी "शुभमस्तु-5" प्रकाशित हुई हैं