व्याकरण- व्यथा
प्रत्याहार संज्ञा जब तक सीखा, तब तक इत्संज्ञा मैं भूल गया। हलन्त्यम् मुझसे दूर खडा, व्याकरण ने खूब शूल दिया।
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Read Moreपालघर पराया लगता अब भारत की माटी में। यही देखना बाकी था ठाकरे की परिपाटी में॥ धरा पर जब रक्षक
Read More12/05/2019 – मातृदिवस पर काव्यमयी संस्था “सृजन के अंकुर” द्वारा आयोजित गोष्ठी में वक्ताओं ने नारी के सशक्तिकरण और मां
Read Moreउत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार के शिक्षाशास्त्र विभाग में अध्ययनरत छात्राध्यापिका “दीपा दिवाकर” द्वारा रचित वर्तमान समाज में स्त्रियों के परिस्थिति
Read More21/04/19 को उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय में युवा महोत्सव के अवसर पर हिन्दी और संस्कृत काव्य जगत में अपनी पहचान बना
Read Moreमैं काला कोयला पर्वतों का तू सागर की मोती है, मैं क्रोधानल शंकर की तू ज्वाला जी की ज्योति है।
Read Moreभक्ति में शक्ति मिले जिन्दगी में पुरस्कार तेरे, दिवाकर सितारे कलमकार तेरे मुसाफिर सभी जिंदगी की खुशी के, सदा देखते
Read Moreकह दो कह दो लोभी, जल्लादो, मक्कारों से , कह दो कह दो इन क्षेत्रहित के ठेकेदारो से, कह दो
Read Moreबना कर पकवान, गरीबों को करो दान, भूख से न जाये जान, भारत महान है । पकवान बनाकर, अपना भी
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