कविता

नव संग्राम

पालघर पराया लगता अब भारत की माटी में।
यही देखना बाकी था ठाकरे की परिपाटी में॥

धरा पर जब रक्षक ही भक्षक बन जाता है ।
कृषक का मित्र केचुवाँ तक्षक बन जाता है॥

रावण ललकार रहा है राम की मर्यादा को।
प्यादा ललकार रहा है भू मण्डल के राजा को॥

जो पिण्ड दान कर चुके थे अपने ही हाथों से।
जो मतलब रखते थे आचार्य शंकर की बातों से॥

जो पूरा जीवन अपना दो रोटी पर जी लेते थे।
प्यास लगी तो अमृतमय गंगा जल पी लेते थे॥

जो सर्वस्व अर्पित किये थे धर्म की परिपाटी को।
जिसने अपने लहू से सींचा भारत की माटी को ॥

जिसने मानवता को वेदों का अक्षय ज्ञान दिया।
देवताओं को दधीचि ने अपनी अस्थि दान किया॥

मैं ऋषि पुत्र होने का धर्म निभाने निकला हूँ ।
मैं भारत के जन जन की पीडा गाने निकला हूँ ॥

तुम भी मेरे पथ पर अब राही बनकर आओ तो।
जो पीडा दिल में है जन जन को समझाओ तो ॥

शिवसेना अब शवसेना बनकर मौन खडी है,
राजनीति और धर्मनीति में नीति कौन बड़ी है ।

राजनीति की कुर्सी से स्वयं निर्णय तुम कर लेना ,
बाला जी शर्मिदा न हो एेसा कुछ तुम कर देना ।

उद्धव धर्म कर्म खो चुके है राजभवन के कोने में,
निश्चित विनाश लिखा रहता है निर्दोषों के रोने में ।

— राम ममगाँई ‘पंकज’

रामचन्द्र ममगाँई पंकज

नाम- रामचंद्र ममगाँई । साहित्यिक नाम-पंकज । जन्मतिथि- 15 मई 1996 पिता का नाम- श्री हंसराम ममगाँई। माता का नाम- श्रीमति विमला देवी। जन्म स्थान-घनसाली टिहरी गढवाल उत्तराखंड। अस्थायी पता - देवपुरा चौक हरिद्वार उत्तराखण्ड। स्थाई पता- ग्राम मोल्ठा पट्टी ढुंगमन्दार घनसाली जिला टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड पिन को- 249181 मो.न. 9997917966 ईमेल- ramchandramamgain@gmail.com शिक्षा- शास्त्री और शिक्षाशास्त्री रचना साझा संकलन 1 अनकहे एहसास 2. एहसास प्यार का विशेष - चित् तरंगिणी त्रैमासिक पत्रिका का मुख्यसम्पादक । हिन्दी व संस्कृत के विभिन्न विषयों पर लेख व कविता अनेक पत्रिकाओं व अखबार में प्रकाशित ॥