/ महामानव बनो /
विश्व चेतना के बीज हे मनुष्य ! अंकुरित होने दो तुम्हारे निर्मल चित्त में लहलहाती फ़सलों की सरसराने दो, स्वेच्छा
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Read Moreधूप में चलता हूँ, सुख और आराम को त्यागकर कि मेरी यात्रा मानव की ओर है एक अच्छे समाज की
Read Moreजी नहीं सकता मैं अकेला जी नहीं सकते तुम अकेले जी नहीं सकता कोई अकेला इस मानव जग में चलना
Read Moreहंसनेवालों को हंसने दो यह नयी बात तो नहीं अपने रास्ते पर चलनेवालों को मैं फिसलता हूँ, गिरता हूँ लड़खड़ाता
Read Moreतर्क करो अपने आप में तर्क करो विपक्षी से वैज्ञानिकता के सहारे असफल हो गये हो तो चलो गहन अध्ययन
Read Moreजलता हूँ मैं अपने आपमें अक्षर बन जाता हूँ नित्य प्रज्ज्वलित ज्वाला मेरे बनते हैं अक्षर प्रखर असमानता, अत्याचारों के
Read Moreहाँ, मैं मछली हूँ, तड़पता हूँ ज्ञान के लिए उस सत्संग के लिए जहाँ अविरल झरझर अंतरंग की धार हो
Read Moreमैं समाज से बोलता हूँ दुनिया से बोलता हूँ मनुष्य से बोलता हूँ मेरे पास वह शक्ति नहीं उन भेड़ियों
Read Moreकभी – कभार हम अपनों से, अपना समझनेवालों से भी पराये हो जाते हैं दूर से दूर से हम देखे
Read Moreबकरे को उसने बड़ी दुलार से पाला – पोसा किया विश्वास की कोमल जगह पर उसे बलि चढ़ा दी निर्ममता
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