उड़ने दो मन को
उड़ने दो मन को, अनंत आवरण में समन्वित रूप में अपना कुछ बनने दो, विचारों के जग में एकता हमारी
Read Moreउड़ने दो मन को, अनंत आवरण में समन्वित रूप में अपना कुछ बनने दो, विचारों के जग में एकता हमारी
Read Moreअकेला कोई नहीं जी सकता इस दुनिया में एक दूसरे के सहयोग से ही बनती है जिंदगी समूहिक चेतना का
Read Moreअस्पताल में पलंग पर लेटा था मैं मेरी हालत को देख लहू सूख गया था मां का रोने में भी
Read Moreपरम पिता ईश्वर सत्य मानकर उसके विश्वासों की दुनिया में आशाओं की गली – गली में आस्तिक था मैं ‘
Read More// स्वतंत्रता // खिलने दो अपने आप इन नन्हें सुमनों को हाथ न जोड़ो ये मुरझा जाएँगे ये प्रकृति की
Read More// इंतजार में.. // संसार के ये घने बादल घुमड़ – घुमड़कर घेरे मुझे, गर्जन करते हैं बरसात की अविचल
Read More// यादें…// कैसे सोता हूँ मैं आँखभरी नींद में आराम से.. सुखभरे इस पलंग पर! वो यादें हैं अतीत की
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