कविता

/ मानव जग में… /

कभी – कभार हम
अपनों से,
अपना समझनेवालों से भी
पराये हो जाते हैं
दूर से
दूर से हम देखे जाते हैं
यह नियति है जीवन की
एक दूसरे से मिलना,
सारे बंधनों से अलग हो जाना,
मानवीय भावनाओं को
विचारों के साथ जोड़कर
प्रगति पर दौड़ना
यह एक तंतु है जीवन का।
भेद – विभेदों की इस दुनिया में
जीवन तंत्र ने
जीव – जीव के बीच में
अनगिनत रेखाएँ खीची हैं,
अनश्वर ये मेरे अक्षर भी
मेरे जन्म के आधार पर
जाति के मयानों में
अवश्य तोले जाते हैं
अक्षरों की गिनती होती है
सुंदरता के आईने में
हर बात का एक पैमाना होता है
हर मेधा का
अपना दृष्टिकोण चलता है
इस मानव जग के
हरेक बात की कीमत
तय हो जाती है दिमाग से।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।