कविता

/ वह जानता ही नहीं.. /

बकरे को उसने
बड़ी दुलार से
पाला – पोसा किया
विश्वास की कोमल जगह पर
उसे बलि चढ़ा दी निर्ममता से,
मालिक का यह दुलार नाटक
वह नादान जान नहीं पाया
उसके हर बात को वह
मिमियाता रहा, सिर हिलाता रहा,
माँस के हर टुकड़े में आज
जीभ का स्वाद बन गया,
दिन के उजाले में
सच का पोल खुल गया
मगर, जाति भेद का तंत्र
मनुष्य का स्वार्थ कुतंत्र
कुटिल यंत्र जानने का अब
बकरे की जान नहीं रह पाया।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।