कविता

/ महामानव बनो /

विश्व चेतना के बीज
हे मनुष्य ! अंकुरित होने दो
तुम्हारे निर्मल चित्त में
लहलहाती फ़सलों की
सरसराने दो, स्वेच्छा वायु से
बचाते रहो अपनी रौनक को
मूढ़ विचारों से,
बौद्धिक चेतना का
हरियाली तुम बनो
अनवरत साधना में
सत्य का अहसास करो

बंदी मत बन जाओ
असीम इच्छाओं के कारागार में,
यंत्रवत दौड़ो मत
अंधे – भाग – दौड़ में
कुछ भी नहीं मिलेगा तुमको
स्वार्थ – पाँव के तले कुचलाओगे
तुम ही हो, अमूल्य निधि
असीम संपत्ति, मोती – रत्न,
एकता के क्षणों में
वह आगार तुमको मिलेगी
निज़ धर्म के वचनों से
सुख – शांति तुम पाओ
समता, ममता, बंधुता, भाईचारा
मानवता के भूषणों से
महामानव बन जाओ ।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।