कविता

कोरोना काल के शिक्षक

शिक्षक का जीवन मुहाल हो गया
बद से बदतर सा हाल हो गया ।

ज्ञान का दीप जलाने वाला
गुरु, आचार्य, अध्यापक, शिक्षक
जब से टीचर हो गया।
कुम्हार, मोमबत्ती और दीपक की
उपमा का अधिकारी अब
निजी संस्थानों का अब बैल हो गया ।

शिक्षक का जीवन मुहाल हो गया
बद से बदतर सा हाल हो गया ।

पढ़ाने , लिखाने और सर्वांगीण विकास में
छह दिन और छः घंटे का था एग्रीमेंट जो कभी पढ़ने का
अब  वह सातो दिन और चौबीस घंटे मैं परिवर्तित हो गया
पढ़ा रहा है , पर स्कूल में नहीं है
घर में है , पर सुकून नहीं है।

शिक्षक का जीवन मुहाल हो गया
बद से  बदतर सा हाल हो गया ।

ना  ई एल मिलता है, ना मेडिकल
ना बोनस मिलता , ना है परमानेंट  होने का  आभास
अब तो वो अवैतनिक हो गया
संस्था का गुमान है ,विद्यार्थी भी पास है
ना पालको का साथ , ना फीस की कोई  बात है।

शिक्षक का जीवन मुहाल हो गया
बद से बदतर सा हाल हो गया ।

वो स्वयं कितना मजबूर हो गया
कर्तव्य बोध का उपदेशक है
कर्म क्षेत्र का पथप्रदर्शक है
आज दिशाहीन, किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया

शिक्षक का जीवन मुहाल हो गया।
बद से बदतर सा हाल हो गया ।

— सारिका ‘जागृति’

डॉ. सारिका ठाकुर "जागृति"

ग्वालियर (म.प्र)