भाषा-साहित्य

हिंदी भाषा: कुछ शंकाएं और समाधान

आप यह तो अच्छी तरह जानते ही हैं, कि लेखक, पाठक और प्रतिक्रिया का चोली-दामन का साथ होता है. लेखक लिखता है, पाठक पढ़ता है और प्रतिक्रिया भी लिखता है. यह प्रतिक्रिया लेखक की लेखनी का आइना होती है.

आप यह भी अच्छी तरह जानते हैं, कि हमारे लिए पाठक और उसकी प्रतिक्रिया कितना महत्त्व रखती है! पाठक की प्रतिक्रिया से रचना की सार्थकता सिद्ध होती है. प्रतिक्रिया सकारात्मक हो या नकारात्मक, लेखक को बहुत कुछ सिखा जाती है. हमें तो इसका अत्यंत प्रभावी अनुभव है.

अब देखिए न! हमने एक ब्लॉग लिखा था- ”चार बाल गीत- 4”. इसमें हमारे एक प्रबुद्ध पाठक सुदर्शन खन्ना की प्रतिक्रिया आई-
”डॉ. मनमोहन वैद्य सह सरकार्यवाह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुसार अपनी भाषा, बोली और अपने शब्दों का उपयोग न करने या उन्हें प्रचलन में न रखने पर वे मृत हो जाते हैं. ‘भाषा किसी भी व्यक्ति एवं समाज की पहचान का एक महत्वपूर्ण घटक तथा उसकी संस्कृति की सजीव संवाहिका होती है.’ आज विविध भारतीय भाषाओं व बोलियों के चलन तथा उपयोग में आ रही कमी, उनके शब्दों का विलोपन तथा विदेशी भाषाओं के शब्दों से प्रतिस्थापन एक गंभीर चुनौती बन कर उभर रही है. अनेक भाषाएं व बोलियां विलुप्त हो चुकी हैं और कई अन्य का अस्तित्व संकट में है. यह कितना विदारक है!”

इस शानदार प्रतिक्रिया के उत्तर में हमने लिखा था-
”प्रिय ब्लॉगर सुदर्शन भाई जी, आपके ये विचार आगामी हिंदी दिवस के ब्लॉग में सम्मिलित होंगे.”

जाहिर है कि प्रबुद्ध पाठक सुदर्शन खन्ना की प्रतिक्रिया हमेंआगामी हिंदी दिवस के लिए तैयार कर गई. है न प्रभावी लेखन और प्रभावी प्रतिक्रिया!

समय मिलते ही नई-नई जानकारियां बांटने के इच्छुक प्रबुद्ध पाठक सुदर्शन खन्ना की एक और प्रतिक्रिया आई-
”भारतीय भाषाओं की वर्णमाला विज्ञान से भरी है। वर्णमाला का प्रत्येक अक्षर तार्किक है और सटीक गणना के साथ क्रमिक रूप से रखा गया है। इस तरह का वैज्ञानिक दृष्टिकोण अन्य विदेशी भाषाओं की वर्णमाला में शामिल नहीं है। जैसे देखें क ख ग घ ङ- पांच के इस समूह को “कण्ठव्य” कंठवय कहा जाता है क्योंकि इस का उच्चारण करते समय कंठ से ध्वनि निकलती है। उच्चारण का प्रयास करें। च छ ज झ ञ – इन पाँचों को “तालव्य” तालु कहा जाता है क्योंकि इसका उच्चारण करते समय जीभ तालू महसूस करेगी। उच्चारण का प्रयास करें। ट ठ ड ढ ण – इन पांचों को “मूर्धन्य” मुर्धन्य कहा जाता है क्योंकि इसका उच्चारण करते समय जीभ मुर्धन्य (ऊपर उठी हुई) महसूस करेगी। उच्चारण का प्रयास करें। त थ द ध न – पांच के इस समूह को दन्तवय(दन्त्य) कहा जाता है क्योंकि यह उच्चारण करते समय जीभ दांतों को छूती है। कोशिश करो प फ ब भ म – पांच के इस समूह को कहा जाता है अनुष्ठान(ओष्ठ्य) क्योंकि दोनों होठ इस उच्चारण के लिए मिलते हैं। कोशिश करो दुनिया की किसी भी अन्य भाषा में ऐसा वैज्ञानिक दृष्टिकोण है? हमें अपनी भारतीय भाषा के लिए गर्व की आवश्यकता है,”
सचमुच भारतीय भाषाओं की वर्णमाला के वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर हमें गर्व है.

प्रतिक्रिया में ही सुदर्शन भाई ने कितना कुछ सिखा दिया.

अब एक और ब्लॉग की चर्चा करते हैं. एक ब्लॉग आया-
”संवेदना की देवी चंचल जैन: जन्मदिन की बधाई, हर्षे नैन”. इस ब्लॉग में एक नए कामेंटेटर नमूदार हुए, जिनका नाम है- अंशुमान गौड़.
भाई अंशुमान गौड़ जी ने लिखा-

”मैडम माफी चाहता हूं यहां लिखने के लिए, मगर व्याकरण के कुछ टॉपिक पे मुझे कुछ परेशानी थी समझने में , मुझे विश्वास है की यह संदेह आप दूर कर पाएंगी। प्रश्न है कि, उच्चारण भिन्नता के कारण वर्तनी में समस्याएं दिखाई देती हैं, इस पर थोड़ा संदेहमोचन करने की कृपा करें 🙏🙏🙏”

भाई अंशुमान गौड़ जी की प्रतिक्रिया भले ही संदेहमोचन करने के लिए थी, पर थी सार्थक, सटीक और विचारोत्तेजक! अब उनसे संपर्क कैसे किया जाए! आजकल कामेंट में कामेंटेटर की मेल आइ.डी. तो आती नहीं! पर हमारे लिए पाठक-कामेंटेटर प्रधान हैं. हमने फेसबुक पर उनसे संपर्क किया. संयोगवश कामेंट में आई उनकी तस्वीर से ही भाई अंशुमान गौड़ जी से फेसबुक मैसेंजर पर संपर्क हो गया. अंशुमान ने भी तुरंत लिखा-

”आदरणीय महोदया सादर प्रणाम स्वीकार कीजिए 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा है कि आपने मुझसे संपर्क करने के लिए सोचा और संपर्क किया
आपके साथ बात करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है अगर कोई चूक हो तो ख्यमा करें
नमस्कार 🙏🏻🙏🏻😊”

हम भाई अंशुमान गौड़ जी से हुई पूरी बात आपको सुनवाए देते हैं-
”आपने हम पर विश्वास जताया, हम धन्य हो गए.” हमने कहा.

”मैं आपको क्या कह कर पुकारूं मुझे समझ नहीं आ रहा
यह तो मेरा अहोभाग्य है कि आपने मुझ से संपर्क किया 🙏🏻
मैं अभी +३ , प्रथम वर्ष का छात्र हूं IGNOU मैं इस साल दाखिला लिया हुआ है.”

”आप दीदी कहें या दादी, कोई फर्क नहीं पड़ता, बहरहाल आप दीदी कह सकते हैं.” हमारा जवाब था.

”मेरी मातृभाषा ओड़िया है मगर बचपन से ही हिंदी के साथ मेरा अहैतुक लगाव रहा है.”

”आप अपनी शंकाएं रखिए, हम उनका निवारण करने की पूरी कोशिश करेंगे
अहैतुक शब्द सुनकर आनंद आ गया.” हमें सचमुच आनंद आ गया था.

”मैं हाई स्कूल, इंटर और फिलहाल +३ में भी हिंदी के साथ पढ़ाई कर रहा हूं । मगर अभी दिक्कतें थोड़ी बढ़ रही हैं ऊपर से कोई अच्छा गाइड नहीं है यहां, तो आपसे विनती है कि व्याकरण विभाग में थोड़ी मदद करें.”

”भाई, आप हमारे ब्लॉग से तो जुड़ ही गए हैं. वैसे तो हमारा हर ब्लॉग हिंदी विशेष होता है, पर हमारे ब्लॉग पर कामेंट में भी आप बहुत कुछ सीख पाएंगे.”

”मैंने बहुत सारी कविताएं भी लिखी हैं हिंदी में, आगे आपको पेश करूंगा, फिलहाल कुछ शंकाए थीं व्याकरण में.”

”हमारे ब्लॉग पर अनेक विद्वान पाठक अपनी प्रतिक्रिया लिखते हैं.” यह हमारे मन की बात थी.

”हां, बहुत अच्छा प्लेटफॉर्म है मुझे बहुत अच्छा लगा आप लोगों के साथ जुड़ के ।”

”कल के ब्लॉग चार बाल गीत- 4 में सुदर्शन खन्ना की प्रतिक्रियाएं पढ़िए.”
”जी दीदी थोड़ा बहुत पढ़ा है मैंने
दीदी प्रथम प्रश्न यह है कि “मूल स्वर क्या है ?”

”ठीक है, अपनी ई.मेल लिख दीजिए.” हमने लिखा, साथ ही जवाब भी दे दिया.

”मूल स्वर – जो स्वर दूसरे स्वरों के मेल से न बने हों, उन्हें मूल स्वर कहते हैं। ये चार हैं –अ, इ, उ, ऋ। सन्धि-स्वर – जिन स्वरों की उत्पत्ति दूसरे स्वरों के योग से हुई है , वे सन्धि-स्वर कहलाते हैं । हिन्दी वर्णमाला मे इसकी संख्या सात है – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ ।
शीघ्र ही हिंदी दिवस आने वाला है, हिंदी पर आपको ढेरों ब्लॉग्स पढ़ने को मिलेंगे. वैसे तो हमारा हर ब्लॉग हिंदी विशेष ही होता है.

”हां दीदी 14  सितंबर को है न ?”

”जी.”

”नाक्षरं मंत्रहीतं नमूलंनौषधिम्।
अयोग्य पुरुषं नास्ति योजकस्तत्रदुर्लभः॥
ऐसा कोई भी अक्षर नहीं है जिसका मंत्र के लिए प्रयोग न किया जा सके, ऐसी कोई भी वनस्पति नहीं है जिसका औषधि के लिए प्रयोग न किया जा सके और ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जिसका सदुपयोग के लिए प्रयोग न किया जा सके, किन्तु ऐसे व्यक्ति अत्यन्त दुर्लभ हैं जो उनका सदुपयोग करना जानते हों।” बात अक्षरों की चल रही थी.

दूसरा प्रश्न है “उच्चारण गत भिन्नता के कारण उत्पन्न होने वाली वर्तनी की समस्याओं पर प्रकाश डालें ।”

दूसरी शंका के लिए हम आपको एक ब्लॉग भेजेंगे, इस थीसिस पर हमें राज्य पुरस्कार मिला था.
हिंदी वर्तनी की सामान्य अशुद्धियां
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/?p=47786
हमने ब्लॉग का लिंक भी भेज दिया.

”मैं सदा आभारी रहूंगा आपका”

”आप शंकाएं लिखते जाइए
यह हमारे लिए उपहार है.”

“प्रभावी लेखन के महत्व पर थोड़ा विस्तृत विवरण दीजियेगा
प्रभावी लेखन-.”

”प्रभावी लेखन से पहले बात एक प्रभावी वरदान की-
एक बुजुर्ग महिला की चतुराई से श्री गणेश जी भी प्रसन्न हुए. श्री गणेश जी के वरदान मांगने पर बुजुर्ग महिला बोली- ‘यदि आप प्रसन्न हैं, तो मुझे नौ करोड़ की माया दें, निरोगी काया दें, अमर सुहाग दें, आंखों की रोशनी दें, नाती दें, पोता, दें और सब परिवार को सुख दें और अंत में मोक्ष दें।’

प्रभावी वरदान की तरह प्रभावी लेखन में भी बहुत सावधानी बरतनी होती है. सबसे पहले मुहावरों-कहावतों का समुचित प्रयोग करना होता है, जैसा कि श्री गणेश (लघुकथा) के अंत में कहा गया है- ”बदलाव का श्री गणेश हो चुका था.” इसका अर्थ है बदलाव का प्रारंभ हो चुका था.

प्रभावी लेखन के लिए शीर्षक का प्रभावी होना अत्यंत आवश्यक है.

प्रभावी लेखन के लिए विषयवस्तु का सार्थक, नई जानकारी युक्त या फिर जीवनोपयोगी होना अत्यंत आवश्यक है.

प्रभावी लेखन के लिए भाषा का काल-पात्र-स्थान के अनुसार होना अत्यंत आवश्यक है.

प्रभावी लेखन के लिए भावपक्ष का प्रभावी होना भी अत्यंत आवश्यक है. संवेदना के बिना लेखन को प्रभावी नहीं बनाया जा सकता.

कलापक्ष के बारे में तो हम बता ही चुके हैं, कि भाषा आलंकारिक हो तो बहुत अच्छा, पर मुहावरों-कहावतों आदि के प्रयोग से रोचक भी हो और संप्रेषक भी. इसके अतिरिक्त वर्तनी की त्रुटियों पर विशेष ध्यान देना चाहिए, अन्यथा पढ़ने में रुचि समाप्त हो जाती है.”

अनेक पाठक अपने लेखन या प्रतिक्रिया में विराम चिह्न में त्रुटि करते हैं. उसका नियम कुछ इस प्रकार है-
”अर्द्ध विराम या पूर्ण विराम से पहले स्पेस नहीं छोड़ना चाहिए. स्पेस अर्द्ध विराम या पूर्ण विराम के बाद छोड़ना चाहिए.”

अपने लेखन को प्रभावी बनाने के लिए अच्छे लेखकों की रचनाएं बराबर पढ़ते रहना चाहिए.

निष्कर्ष यह हुआ कि प्रभावी लेखन के लिए शीर्षक से लेकर विषयवस्तु, भाषा, शैली का प्रभावी होना अत्यंत आवश्यक है.

”फिलहाल इतनी ही शंकाएं हैं आगे पढ़ाई में और भी उत्पन्न होंगी तो मैं आप से संपर्क करूंगा, अभी तो संपर्क में भी रहूंगा आगे
कल मैं आपको मेरी लिखी एक कविता भेजूंगा और आप उसपर विचार करके अपना मत रखिएगा 🙏🏻🙏🏻🙏🏻.”

वादे के अनुसार अगले दिन भाई अंशुमान भाई की कविता भी आ गई थी. शीघ्र ही वह कविता भी आपके सामने आ जाएगी. अंशुमान का अर्थ होता है- भगवान सूर्य. आशा है अंशुमान भाई का भविष्य उज्ज्वल होगा और वे ओड़िया भाषा-भाषी होते हुए भी हिंदी के साहित्य-गगन में अंशुमान की भांति प्रकाशित होकर देद्दीप्यमान होते रहेंगे.

इन ब्लॉग्स को भी पढ़ें-

हिंदी वर्तनी की सामान्य अशुद्धियां

https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/?p=47786

हिंदी भाषा की खूबसूरती
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/rasleela/%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%96%E0%A5%82%E0%A4%AC%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80/

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “हिंदी भाषा: कुछ शंकाएं और समाधान

  • लीला तिवानी

    कोई हिंदी सीखने का उत्सुक छात्र मिल जाए, इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है? भाई अंशुमान गौड़ हिंदी अच्छी तरह लिख लेते हैं, बोल लेते हैं. अनेक गैर हिंदी भाषी प्रदेशोंऔर देशों के व्यक्तियों ने हिंदी साहित्य को अत्यंत समृद्ध किया है, यहां तक कि हिंदी का इतिहास भी लिखा है, शब्दकोष भी बनाए हैं. आशा है भाई अंशुमान गौड़ भी अपने हिंदी-प्रेम के कारण हिंदी साहित्य को अत्यंत समृद्ध करेंगे. भाई अंशुमान गौड़ को हमारी ढेरों शुभकामनाएं, जय हिंदी, जय भारत!

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