सामाजिक चिंतन
मातापित्रोर्मलोद्भूतं मलमांसमयं वपुः। त्यक्त्वा चांडालवद् दूरं ब्रह्मीभूय कृती भवः।। (विवेकचूड़ामणि दूसरा भाग, श्लोक २८७) भगवद्गीता, उपनिषत् आदि धर्म ग्रंथों को
Read Moreमातापित्रोर्मलोद्भूतं मलमांसमयं वपुः। त्यक्त्वा चांडालवद् दूरं ब्रह्मीभूय कृती भवः।। (विवेकचूड़ामणि दूसरा भाग, श्लोक २८७) भगवद्गीता, उपनिषत् आदि धर्म ग्रंथों को
Read Moreअखंड बनो इस जग मेंं तृप्त नहीं होती इंद्रियाँ कभी इच्छाओं की शाखाएँ शांति नहीं देती हैं मन को अखंड
Read Moreजाति नहीं संघ बनो संगठित करो उनको जो दीन – दुःखित, पीड़ित हैं साथ लेकर आगे बढ़ो दबे – कुचले
Read Moreगरजते हैं मेघ चारों ओर घुमड़ -.घुमड़कर सारे आकाश में फैल जाते हैं पागल होकर बढ़ – बढ़कर गरजते हैं
Read Moreहंसनेवालों को हंसने दो यह नयी बात तो नहीं अपने रास्ते पर चलनेवालों को, मैं फिसलता हूँ, गिरता हूँ लड़खड़ाता
Read Moreजहाँ सत्य है न्याय की बात है षड्यंत्र नहीं रचते हैं दूसरे का अधिकार नहीं छीनते उस जग की मैं
Read Moreआप बहुत याद आते हैं मान्य दत्ता महोदय जी, सुना था कि आप इस दुनिया में नहीं हैं कई साल
Read More/ विश्वास छोड़ूँगा नहीं/ लिखना चाहता हूँ, टूट गयी मेरी कलम की नोक बोलना चाहता हूँ, बाँधी गयी मुँह पर
Read Moreबहुत कुछ बाकी है रूको मत, धीरे – धीरे तो चलो काल की कठोरता में बंदी मत बनो देखो उन
Read Moreकाल की कठोरता हमें बहुत कुछ सिखाता है संकुचित भावजालों से मुक्त होने का पाठ वह बार – बार हमें
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