कविता

/ बहुत कुछ बाकी है /

बहुत कुछ बाकी है
रूको मत,
धीरे – धीरे तो चलो
काल की कठोरता में
बंदी मत बनो
देखो उन महान विभूतियों को
विपत्तियों को भी
अपने अनुकूल बनाया है किस तरह
स्टीफेन हॉकिन्स ने जीत लिया
अपने आपको
इस जग को,
सबक सिखाया है उसने
अपने संकल्प के बल पर
विचारों की दुनिया में
तेज से तेज दौड़ा है
अपना कुछ जोड़ा है
जग के चिंतन को
अपने अंदर बसाया है
महात्मा फुले की शिक्षा क्रांति
आम बात नहीं,
संत गाड्गे बाबा ने अपने आचरण से
स्वच्छता का पाठ पढ़ाया,
पेरियार, नारायण गुरू, बाबू मंगूराम
समतावादी चिंतन में
नव समाज की परिकल्पना में
समर्पित शख्स थे हमारे,
जातीय अपमान से बाबा साहब ने
कहीं भी झुक गया नहीं,
संकीर्ण, जीर्ण जीवन नहीं वह
पुस्तकों में जिया है
रात – दिन विचारों के साथ
संघर्ष करता रहा
अपनी खोज़ से
दलित, पीड़ित जनता का
मशाल बनाता रहा
मानव संसार में
सत्य का अहसास कराता रहा,
समर्पित भावना से आज
बनने लगे अनेक मशाल
मानुष का मर्म, मानवता धर्म
जाहिर होने लगा है
जलाते चलो तुम भी
अपनी एक ‘दिविटी’ (मशाल)
समता के पथ पर ।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।