छ्न्द-आल्हा (अर्ध सम मात्रिक)
डोर रिश्तों की लगी ढीली. टूटती जब भी पड़े भार। इसमें भरी स्वार्थ गांठे. मीठी वाणी भर दे प्यार।।१ वचपन
Read Moreडोर रिश्तों की लगी ढीली. टूटती जब भी पड़े भार। इसमें भरी स्वार्थ गांठे. मीठी वाणी भर दे प्यार।।१ वचपन
Read Moreहंसती आंखें श्रमिक ख़ुशी दे जाती है जीवन की सब कमियाँ टल जाती है। चाह ! मेहनतकश हाथों की निशानी
Read Moreममी पापा की छोटी आयु में आज़ादी मिलने बाद शादी हुई। दोनों को सबका बहुत प्यार मिला। ममी को जेठानी
Read Moreक्रोध,गुस्सा,नफरत ये सब धीमा जहर है, इन्हें पीते हम खुद हैं, और सोचते हैं मरेगा कोई दूसरा। कोई भी धर्म शाकाहार का
Read Moreसमय की अंजुली भर किरण जीने को मांगी थी, तुमने नफरत और पश्चाताप का मन द्बार दिया. अब तो लगता
Read More