समय बड़ा बलवान
समय की अंजुली भर किरण जीने को मांगी थी,
तुमने नफरत और पश्चाताप का मन द्बार दिया.
अब तो लगता सब गुम हो गया बन दुत्कार सा,
उठती लहरों सा इच्छाओ पाया कृषक दुलार किया.
प्रभु तुमने तो जब मुरली को क्या छू दिया प्यार से
सूखी यमुना उफनती पाई जान दुलार रस-धार जिया.
मेरी बुद्धिं तो भोली सी चमकती लहर की धार सी थी
सब कुछ बर्वाद किया लेकर साजिश कहर वक्त दिया.
बनी हालात पड़ा में समय की दोराही ले मार पर
पाया भी कुछ नहीं हुआ असहाय गिरा नजर हस्र हिया .
— रेखा मोहन