कविता

उर्मिला विरह (प्रिय छवि चित्रण)

भोर भयी पक्षी चहचहाये
भाया साथ किरण का रवि को
ओ री सखी लाना तूलिका
चित्रित करूँगी प्रिय की छवि को,

प्रातःकाल के शुभ अवसर में
भर दूँ रंग चित्र प्रियवर में
ऐसा ना हो संध्या तक मैं
डूबी जाऊँ व्याकुलता में
मन ये ना बिसराना चाहे
प्रीत भरे उन सुखद क्षणों को
ओ री सखी लाना तूलिका
चित्रित करूँगी प्रिय की छवि को,

प्रतिछवि सदा बसी है उनकी
मेरे उर के अंतः पटल पर
फिर क्यूँ दिखती रूप की छाया
साँझ ढले अम्बर आँचल पर
विरह काम का ताप बढ़ा है
वरण करूँगी मैं चंदन को
ओ री सखी लाना तूलिका
चित्रित करूँगी प्रिय की छवि को,

डूब गयी लक्ष्मी सागर में
अपनाया अग्नि को सती ने
मैं तुम बिना ना वरुँगी मृत्यु
अटल भरोसा निज नियती में
रहूँ प्रतीक्षित अंत स्वाँस तक
वंदन करती दशरथ सुत को
ओ री सखी लाना तूलिका
चित्रित करूँगी प्रिय की छवि को।।

— अनामिका लेखिका

अनामिका लेखिका

जन्मतिथि - 19/12/81, शिक्षा - हिंदी से स्नातक, निवास स्थान - जिला बुलंदशहर ( उत्तर प्रदेश), लेखन विधा - कविता, गीत, लेख, साहित्यिक यात्रा - नवोदित रचनाकार, प्रकाशित - युग जागरण,चॉइस टाइम आदि दैनिक पत्रो में प्रकाशित अनेक कविताएं, और लॉक डाउन से संबंधित लेख, और नवतरंग और शालिनी ऑनलाइन पत्रिका में प्रकाशित कविताएं। अपनी ही कविताओं का नियमित काव्यपाठ अपने यूटयूब चैनल अनामिका के सुर पर।, ईमेल - anamikalekhika@gmail.com