बड़े करीब जाकर ये समझ आया हमको, कितना गहरा है साज़िशों का समंदर। कि अब तो डूब कर हासिल किनारा होगा, कुछ यूं फंसे हैं हम इस दरिया के अंदर। हमारे ही जज़्बातों ने शिकस्त दे दी हमको, वरना हरा न पाया था कभी मुश्किलों का बवंडर। यकीन पर भी यकीन करने से अब तो […]
Author: रूपल सिंह 'भारतीय नारी'
पता- सफीपुर, उन्नाव, उत्तर प्रदेश
मेल- [email protected]
‘वो माँ है’
पोछ देती है पसीना भी आँचल से मेरा मेरे हाथ लगाने से पहले, वो माँ है जो मेरी हर तकलीफ़ जान लेती है मेरे कुछ भी बताने से पहले। वो सिखाती है जीवन के असल मायने हमको स्कूल जाने से पहले, थाम लेती है वो हाथ हमारा रास्तों की ठोकर खाने से पहले। ग़लती हो […]