आल्हा छन्द (16+15=31) गीतिका
शब्द मौन हैं व्यथा देखकर,धरती का उजड़ा श्रृंगार बंजर हो गई भूमि अपनी,उगे वनो पर करे प्रहार, मानव की सुविधा
Read Moreशब्द मौन हैं व्यथा देखकर,धरती का उजड़ा श्रृंगार बंजर हो गई भूमि अपनी,उगे वनो पर करे प्रहार, मानव की सुविधा
Read Moreमैं नदिया हूँ,चंचल हूँ मैं करती हूँ मनमानी शीतलता देता है मेरा निर्मल बहता पानी हर तरंग मदमस्त उछलती लहरो
Read Moreनेता करते हैं यहां, बस अपना उत्थान जनता को ही देखिए, करने सब बलिदान करने सब बलिदान, गिला मत करना
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