गीतिका
टूटे हुए सपनो को अपने जोड़ रहे हैं अन्जान दिशाओं की तरफ दोड़ रहे हैं उम्मीद का दिया जब बुझता
Read Moreशब्द मौन हैं व्यथा देखकर,धरती का उजड़ा श्रृंगार बंजर हो गई भूमि अपनी,उगे वनो पर करे प्रहार, मानव की सुविधा
Read Moreमैं नदिया हूँ,चंचल हूँ मैं करती हूँ मनमानी शीतलता देता है मेरा निर्मल बहता पानी हर तरंग मदमस्त उछलती लहरो
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