कविता – अक्षर-माला
अक्षर-अक्षर की माला बुनती , सत-शब्दों के कुछ मोती चुनती, मनभावों की भाषा लिखती , लिखती हूं प्रीत के गीत
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Read Moreवो ख्व़ाब ही क्या जो अधुरे ना रहे अगर पूरी हो जाती तो इन्हें ख्वाहिशों का नाम ना मिलता !
Read Moreयुग की है यही पुकार, फिर हो महावीर अवतार जियो और जीने दो, गूँजे हर घर, मंदिर, हर द्वार युग
Read Moreरिश्तों की चाशनी में पड़ा कोई कंकर जब मन को किरकिराने लगें ऐ दोस्त तुम अपनी हद में रहो मैं
Read Moreजय जवान जय किसान दोनों आज बेहाल हैं एक सीमा पर खड़ा है दूजा खेत में ड़टा है अन्न और
Read Moreसंवेदनाएं जब मर जाती हैं, जीवन पहाड़ सा बन जाता है, हर पल- पल-पल जीवन का, शिला सा भारी हो
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