हे धरती माता पापियों को , क्यों देती तू जन्म
हे धरती माता पापियों को, क्यों देती तू जन्म खून की होली खेल रहे है जो, कैसे होगा अंत द्वापर
Read Moreहे धरती माता पापियों को, क्यों देती तू जन्म खून की होली खेल रहे है जो, कैसे होगा अंत द्वापर
Read Moreअनुष्टुप छंद “गुरु पंचश्लोकी” सद्गुरु-महिमा न्यारी, जग का भेद खोल दे। वाणी है इतनी प्यारी, कानों में रस घोल दे।।
Read Moreसुन रहे हो न उस वैधव्य की करूण पुकार जिसका छूटा नहीं अब तलक मेंहदी का रंग लेकिन उजड़ गया
Read Moreचित्र अभिव्यक्ति आयोजन आज मैं लाचार हूँ, उम्र की दहलीज पर बन सखी मेरी खड़ी, वैसाखी शरीर पर
Read Moreजब से मैंने गाँव क्या छोड़ा शहर में ठिकाना खोजा पता नहीं आजकल हर कोई मुझसे आँख मिचौली का खेल
Read Moreओ प्रिये!! तुम कहाँ हो! बसंती हवाएं चल रही है, सभी के मन को भा रही है, सारी कलियां खिल
Read Moreअँधेरे में जो साथ छोड़ दे , वो साया होता है , ख्वाब नहीं । कच्चे धागे सा जो टूट
Read Moreप्रदत शीर्षक — सुगंध, सौरभ, सुरभि, महक, खुशबू आदि उपवन मेरा महक गया, आहट पिय की पाय अंगड़ाई लेने लगी,
Read Moreमैंने तो बस चाहा तुम्हें तुमसे हृदयतल से प्रेम किया जैसे प्रत्येक साधारण स्त्री करती है अपने स्वप्न पुरुष से
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