कविता : जीने का मज़ा
यूँ हर मोड़ को जीने का मजा तेरे साथ भी लेते तो तेरी बेरुखी के सहारे न खोते ये तो
Read Moreयूँ हर मोड़ को जीने का मजा तेरे साथ भी लेते तो तेरी बेरुखी के सहारे न खोते ये तो
Read Moreज्यूँ सुन कर्कशा स्मर-दशा पाजेब धुन संगी परदेशी व्ययन रत्नप्रभा{1} >>>>>>>>>. म्हा नन्हीं सुयशा क्रोध-वशा ध्वनी पायल पहने डोलत
Read Moreन मन में कोई रास है झरे झरे से पात हैं बची न कोई आस है ये कैसी उदास रात
Read Moreऐ प्रेम पथिक तू ठहर ज़रा ये कली अभी खिल जाने दे शलभों के जैसे प्राण न त्यज ये दीप
Read Moreजाने कहां गये वो दिन वो गर्मी की रातें वो छत का छिड़काव कर वो पिताजी का ऑफिस से आ
Read Moreचाँद कहता है मुझसे आदमी क्या अनोखा जीव है उलझन खुद पैदा करता है फिर न सोता है, और मुझसे
Read Moreमाँ की प्यारी, पिता की लाडली होती है बेटियां! बहुत प्यारी लगी पहली बार जब अपने हाथ से पकाकर खिलाई
Read Moreतेरे साथ चलने का हैं मेरा एक सपना, जो तेरी खवाईस है उसे बना लु मैं अपना, जिंदगी में कभी
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