लघुकथा : दहशत
बार-बार घड़ी को देखते हुए रेखा उकता उठी। “बारह बजने को आये,नहीं आना तो यह भी नहीं कि एक फ़ोन ही
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Read Moreअर्धांगिनी साहिबा को फूलों का शौक है. घर में ऐक बेल है, जिसको अक्सर लोग म्नी प्लांट कह देते है
Read Moreउस दिन भोपाल जाने हेतु सुबह की पहली ट्रेन से निकलना तय हुआ। प्रातः 7 बजे से पूर्व में ट्रेन
Read Moreवाल्साल गैरेज से ट्रांसफर होने के बाद पार्क लेन गैरेज में काम शुरू कर दिया था. कुछ महीनों के बाद
Read Moreमनोहर बहुत दिनों से ससुराल न जा पाया था। उसके ससुर का स्वास्थ्य कुछ ढीला ही चल रहा था इसलिए
Read More-ओह !तो तू इस मकान में रहती है? -इसे मकान न कहो—यह तो मेरा घर है। इसमें मुझे आराम मिलता
Read More“अब पोते को पालती, पहले पाली पूत” …वाह! क्या सच्चाई बयान करती कविता है |’ सत्यप्रकाश जी कविता पढकर भाव-विभोर
Read Moreपिछले कांड में मैंने मुक्तसर तौर पर कुलवंत के बारे में लिखा था कि कितना सख्त काम उस ने किया
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