साढ़े पांच फीट का दुबला-पतला व एक फेफड़ा का यह इंसान, जहाँ सेक्स की बातों में मानों Ph.D. प्राप्त कर चुके हों ! वह हर बातों को सेक्स की धुन में इस भाँति से समेटता कि मत पूछो, वह पढ़ाई में crankshaft से जुड़े पिस्टन की तुलना अपने लिंग से कर बैठता, चाहे crankshaft revolution […]
उपन्यास अंश
लघु उपन्यास – षड्यंत्र (कड़ी 30 अन्तिम)
अवसर पाते ही उन्होंने विदुर से एकान्त वार्ता करने की इच्छा प्रकट की। विदुर भी सोच रहे थे कि यदि पांडवों का कोई सच्चा मित्र और सहायक हो सकता है, तो वे यही वासुदेव कृष्ण हो सकते हैं, भले ही उस समय तक कृष्ण अपने फुफेरे भाइयों से मिले भी नहीं थे। यह सोचकर विदुर […]
लघु उपन्यास – षड्यंत्र (कड़ी 29)
अपने निकट सम्बंधी पांडवों के आग में जलकर मर जाने का समाचार शीघ्र ही द्वारिका में भी पहुँच गया। महारानी कुंती यादव प्रमुख वसुदेव की बहिन थीं। अतः सभी पांडवों के साथ उनका गहरा लगाव था। इसलिए यह दुःखद समाचार मिलते ही वसुदेव अपने दोनों पुत्रों बलराम और कृष्ण के साथ शोक प्रकट करने के […]
लघु उपन्यास – षड्यंत्र (कड़ी 28)
इधर दुर्योधन ने पांडवों के लिए शोक करने का दिखावा तो किया, किन्तु उसे पूरी तरह विश्वास नहीं हुआ कि पांडव वास्तव में जलकर मर गये होंगे। इस पर विचार करने के लिए शकुनि, दुर्योधन, कर्ण और दुःशासन की आपस में गुप्त चर्चा हुई। दुर्योधन बोला- ”मामाश्री! मुझे विश्वास नहीं होता कि पांडव वास्तव में […]
लघु उपन्यास – षड्यंत्र (कड़ी 27)
इधर हस्तिनापुर में जब यह समाचार पहुँचा कि जिस भवन में पांडवों ठहरे हुए थे उसमें आग लग गयी है और सभी पांडव अपनी माता सहित जलकर मर गये हैं, तो पूरे नगर में शोक व्याप्त हो गया। यह समाचार जानकर भीष्म को बहुत शोक हुआ। वे बहुत पछताये कि उन्होंने पांडवों को वारणावत जाने […]
लघु उपन्यास – षड्यंत्र (कड़ी 26)
‘शिव भवन’ की आग से बचकर पांडव वन मार्ग से गंगा नदी की ओर जा रहे थे। माता कुंती को पैदल चलने में बहुत कठिनाई हो रही थी और वे बहुत धीरे-धीरे चल रही थीं। इसलिए भीम ने उनको अपने कंधे पर बैठा लिया। इससे वे अधिक तेजी से चलने लगे। भोर होने से पहले […]
लघु उपन्यास – षड्यंत्र (कड़ी 25)
पांडवों की योजना के अनुसार त्रयोदशी के दिन महारानी कुंती ने ब्राह्मण भोज का आयोजन किया। उन्होंने अपने निर्देशन में सेवकों से भोजन तैयार कराया और ब्राह्मणों को भोजन कराया। भोजन करने के लिए देर शाम तक ब्राह्मण और अन्य वर्णों के निर्धन लोग आते रहे। कुंती ने बड़े मनोयोग से सबको भोजन कराया। सुरंग […]
लघु उपन्यास – षड्यंत्र (कड़ी 24)
अपनी बनायी योजना के अनुसार चारों छोटे पांडव अश्वों पर सवार होकर मृगया के बहाने वन में निकल गये। वहाँ माता कुंती के पास केवल युधिष्ठिर रह गये, क्योंकि माता को अकेले नहीं छोड़ा जा सकता था। युवराज युधिष्ठिर प्रतिदिन नियमानुसार पात्र ब्राह्मणों को दान दिया करते थे। शिव भवन में आने के अगले ही […]
लघु उपन्यास – षड्यंत्र (कड़ी 23)
जब पांडवों का दल वारणावत पहुँचा, तो वहाँ के नागरिकों ने उनका भव्य स्वागत किया। स्वागत करने वालों में पुरोचन भी था। उसने युवराज को सूचित किया- ”युवराज! आप सभी के निवास की व्यवस्था अभी पुराने महल में की गयी है, जिसे स्वच्छ करा दिया गया है। नवीन महल में अभी कुछ दिन का कार्य […]
लघु उपन्यास – षड्यंत्र (कड़ी 22)
वारणावत जाने का आदेश पाकर युवराज युधिष्ठिर अपने निवास पर आये और अपनी माता कुंती तथा सभी भाइयों को इस आदेश की सूचना दी और चलने की तैयारी करने को कहा। अन्य पांडवों तथा कुंती ने भी इस आदेश पर अपना रोष प्रकट किया और स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह हमें हस्तिनापुर से दूर […]