उपन्यास अंश

लघु उपन्यास – षड्यंत्र (कड़ी 21)

इधर पूरी योजना तैयार हो जाने के बाद और वारणावत में महल बनना प्रारम्भ हो जाने के बाद शकुनि के परामर्श से दुर्योधन अपने पिता से मिला और उनसे निवेदन किया कि वारणावत के निवासी शिव पूजनोत्सव में पांडवों को बुला रहे हैं। वे उनके लिए महल भी तैयार कर रहे हैं। इसलिए आप पांडवों […]

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लघु उपन्यास – षड्यंत्र (कड़ी 20)

पूरी योजना बना लेने के बाद दुर्योधन ने पुरोचन को अपने कक्ष में बुलाया। उस समय शकुनि भी वहीं था। पुरोचन ने आकर उनका अभिवादन किया और कहा- ”कहिए युवराज! मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?“ दुर्योधन के सम्पर्क में रहने वाले सभी लोग दुर्योधन को युवराज ही कहते थे। ऐसा करने से उसके […]

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लघु उपन्यास – षड्यंत्र (कड़ी 19)

दुर्योधन के साथ कर्ण और दुःशासन भी आये, जो उसके साथ छाया की तरह लगे रहते थे। तीनों ने आकर शकुनि का अभिवादन किया। आते ही दुर्योधन ने व्यग्रता से पूछा- ”मामाश्री! क्या आपको कोई उपाय सूझा है? मैंने कई बार पांडवों को समाप्त करने का प्रयास किया, परन्तु वे बहुत सतर्क रहते हैं और […]

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लघु उपन्यास – षड्यंत्र (कड़ी 18)

दुर्योधन के जाने के बाद धृतराष्ट्र की चिन्ता और अधिक बढ़ गयी। वे अपने पुत्रों की कमजोरी को जानते थे और पांडवों के बल को भी। उनको यह बात भली प्रकार ज्ञात थी कि द्रोण ने गुरुदक्षिणा में महाराजा द्रुपद को पराजित करने का वचन सभी कौरवों और पांडवों से लिया था। इस कार्य में […]

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लघु उपन्यास – षड्यंत्र (कड़ी 17)

महाराज धृतराष्ट्र अपने मंत्री कणिक के परामर्श पर विचार कर रहे थे, उधर उनका लाड़ला पुत्र दुर्योधन अधीर हो रहा था। उसे पांडवों से छुटकारा पाने में कोई देरी सहन नहीं हो रही थी। इसका कारण यह था कि हस्तिनापुर में जनसाधारण में जैसी चर्चा चल रही थी, वह सब उसके कानों तक भी पहुँच […]

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लघु उपन्यास – षड्यंत्र (कड़ी 16)

इस प्रकार कणिक ने महाराज धृतराष्ट्र को राजनीति की मुख्य बातें समझायीं और शत्रुओं को वश में करने के उपाय बताये। परन्तु यह सब तो धृतराष्ट्र पहले से ही जानते थे। उनको इससे संतुष्टि नहीं हुई, क्योंकि जिस उद्देश्य से उन्होंने कणिक को परामर्श हेतु बुलाया था, वह उद्देश्य पूरा होता नहीं लग रहा था। […]

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लघु उपन्यास – षड्यंत्र (कड़ी 15)

शकुनि की बातें सुनकर धृतराष्ट्र की चिन्ता और अधिक बढ़ गयी। पांडवों के प्रति उनके मन में द्वेष तो पहले से ही था, लेकिन अब इस संभावना को सोचकर उनकी चिन्ता चरम पर पहुँच गयी कि उनको राजसिंहासन छोड़ना पड़ेगा और उनके पुत्रों को पांडवों की दया पर रहना पड़ेगा। इस संभावना के कारण उनको […]

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लघु उपन्यास – षड्यंत्र (कड़ी 14)

सामान्यतया राज्य में होने वाली घटनाओं की सभी बातें शकुनि महाराज धृतराष्ट्र तक पहुँचा देता था और अपनी ओर से भी झूठी-सच्ची कहानियाँ जोड़कर उनके मन में पांडवों के प्रति ईर्ष्या को पुष्ट किया करता था। इसका परिणाम यह हुआ था कि धृतराष्ट्र प्रत्यक्ष में पांडवों के प्रति प्रेम होने का दिखावा करते हुए भी […]

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लघु उपन्यास – षड्यंत्र (कड़ी 13)

पांडवों की कीर्ति से दुर्योधन आदि कौरव राजकुमारों को बहुत ईर्ष्या होती थी। यों तो प्रत्यक्ष में उनको कोई कष्ट नहीं था, लेकिन पांडवों का बढता प्रभुत्व उनकी आँखों में दिन-रात खटकता था। धृतराष्ट्र के अति महत्वाकांक्षी पुत्र दुर्योधन ने शकुनि की सहायता से अपना गुप्तचर तंत्र विकसित कर रखा था, जो जनमानस में व्याप्त […]

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लघु उपन्यास – षड्यंत्र (कड़ी 12)

युधिष्ठिर द्वारा युवराज पद सँभालने से हस्तिनापुर का वातावरण बदलने लगा। सबसे पहले तो उन्होंने न्याय व्यवस्था को सुदृढ़ किया। उन्होंने अपने गुप्तचरों द्वारा पता लगाया कि कौन-से राजकुमार व्यापारियों का सामान बिना मूल्य दिये उठा ले जाते हैं। उन्होंने उन राजकुमारों को अपने सामने बुलाकर कड़ी फटकार लगायी और व्यावसायियों को क्षतिपूर्ति दिलवायी। इसके […]