ग़ज़ल
जब क़लम उठाते हैंबस लिखते जाते हैं जो चाहता हो हमकोउसमें ही समाते हैं करते हैं सृजन ऐसाजगती को जगाते
Read Moreघर की सामने राह कीसफाई करते करतेस्वयं घिस जाते हैंटूट जाते हैंअंदर से बाहर तककुछ किरदारअपने आसपासहोते हैं मौजूदझाड़ू की
Read Moreचाह कर भी चाहतों में वो रंग न भर पता,पंखों को खुद ही कांट जंजीरों में बंध जाता,बेबसी की बेड़ियां
Read Moreहर जगह जहाँ भी देखो,दुनिया में लालच का खेल हैमतलब के इस जहाँ में,सब लालच में अपने-आपको लगाए हुए हैं।
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