ग़ज़ल : ये कैसा मर्ज है सावन
धरा पे टूट पड़ता है ये कैसा मर्ज है …..सावन , धरा के वक्ष पे तेरी उँगलियाँ दर्ज है ….सावन
Read Moreधरा पे टूट पड़ता है ये कैसा मर्ज है …..सावन , धरा के वक्ष पे तेरी उँगलियाँ दर्ज है ….सावन
Read Moreदीदारे यार आया था पिला दी हुस्न की… ..हाला , दस्त से गिर गई हाला लबों पे तिर गई…. हाला
Read Moreनिशा की गोद में शब भर दिया लेकर भटकता है , कोई पूछे तो ये पागल सा चंदा ढूंढता क्या
Read More“गज़ल” बहर-1222 1222 1222 1222 मतला मिलो तुम आज मेले में बहाना मत बना देना किताबों में न खो जाना
Read Moreजब कली को मुस्कुराना आ गया| जान लो मौसम सुहाना आ गया || ** पंछियों की डार आई ही नहीं
Read More“गज़ल” किसने इसे फेंका यहाँ, रद्दी समझ कर के हाथों से उठा अपने, पड़ी किसकी छबी है ये यहाँ तो
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