कविता

कविता

रहकर देखो कभी कच्चे मकानों में

क्या रखा है तपते मैदानों मेंघूमकर देखो कभी सुनसान वीरानों मेंकरवटें लेते रहते हो पक्की हवेलियों मेंरहकर देखो कभी कच्चे

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