कविता : माँ
=========माँ ======== कामयाबी की सीढ़ियाँ चढ़ते – चढ़ते आज बहुत “बड़े” हैं हो गये !! बैठे माँ की निश्छल छाया
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Read Moreजब भी तेरी यादों का झोंका चला आता है, सुकून ओ करीने से , संवरी ज़िन्दगी में, सब कुछ बिखेर
Read Moreबंदगी करता रहा उमर भर का आदमी ठहरा चलता रहा जुबां पर लगा पहरा हिल गए ये होठ यूं ही
Read Moreमैं अधीर हूँ शाँत करो अनंत प्रेम दो हृदय मे धरो स्वप्न मे तुम रहो जीवन मे तुम रहो मेरी
Read Moreखड़ी है उपेक्षित अवस्था में वह बड़े दांतों वाली मशीन कुछ ही दूरी पर परियोजना स्थल से l न जाने
Read Moreअजब गजब सारी दुनिया के रंग बदलते मैँने देखे । ज़र्रे ऊपर उठते देखे , गिरते यहाँ मसीहा देखे ।।
Read Moreजितना करीब आए चेहरे के दाग़ गहराते गए किताबों में छपे शब्द और धुँधलाते गए क्यूँ हर चीज़ अच्छी दूर
Read Moreमैं बेटी बनकर आई हूँ खुशियाँ ही खुशियाँ लाई हूँ, जन्मों जन्मों के रिश्तों को, मैं यहाँ निभाने आई हूँ,
Read Moreक्यों चाहा उसे जो मोहब्बतों के काबिल न थी आंधियों का जज़्बा थी वो प्रेम का सागर न थी हम
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