कविता : फाग और श्रृंगार
अप्सरा सी सजी है सुन्दरी कर सोलह श्रृंगार है खडी देह को वर्ण है गौर बड़ी लुभावनी सी लगी गले
Read Moreअप्सरा सी सजी है सुन्दरी कर सोलह श्रृंगार है खडी देह को वर्ण है गौर बड़ी लुभावनी सी लगी गले
Read Moreझूठ न बोले दर्पण हर सच्चाई को उगले औकात हरेक को दिखाए निहारो रूप जब -जब तुम दर्पण में रहस्य
Read Moreक्यों छोड़ दें हम अपने जीने का अंदाज । क्या है हमारे पास इस अंदाज के सिवा। क्यों छोड़ दें
Read Moreजब सूरज करे अंधेरा, दीपक घात करे उजियारों से। साज़िश का तूफान उठे जब, घर की ही दीवारों से॥ जब
Read Moreफागुन मे बरसत रंग -पीकर भंग हुए मातंग / भूल गये दिन रात ———कहें हम सुप्रभात/ कहें हम सुप्रभात ————
Read Moreकैसे समझाऊं उन्हें कि वो मेरी बंजर जमीन पे पक्का रोड़ हैं मेरे दिल की हार्ड डिस्क पे वो हो
Read Moreकेकरा संग खेलहूं फाग इटली दूर बसत है इटली दूर बसत है केकरा संग खेलहूं फाग कि नैहर दूर बसत
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