लाज़वाब
मैं मानता हूँ तुम्हारे घर के आँगन के गमले में जैसे मैं हूँ एक खिला हुआ गुलाब पर तुम
Read Moreचुप्पियाँ जब गूँज बनकर दिमाग में धमकने लगे और खामोशियाँ भी खुद से गुफ्तगू करने लगे तब मेरे लफ्ज़ मुझे
Read Moreधरती का अंतस डोल रहा था बंद रिश्तों का पट खोल रहा था महल अटारी छोड़ सभी जन
Read Moreजागो हिंदू देखो क्या हो रहा धर्म परिवेश में हिंदू धर्म संकट में पड़ा है धर्म-निरपेक्ष देश में हमारा सनातन
Read Moreखरोच देता हूँ आईने को खुद के हाथों से । मेरी तस्वीर के संग उस बेवफा की तस्वीर क्यों बनती
Read Moreकुटिल काल-कर्कट ने कुतर कुतर काटकर हाड़-माँस के इस ढाँचे को बनाया खोखला काया को l एक खंडहर जर्जर घर,प्रकाम्पित
Read Moreकामकाज़ी महिला के घर आता है हर दिन भूचाल पाँच बज गए हर ऱोज सुबह लहसुन कूटने की आवाज़ से
Read Moreबिगड़ते पर्यावरण पर, उठ रहे हैं सवाल। मानव की खुदगर्जी से, कुदरत है बेहाल।। १ औद्योगिकरण क्रांति से, होय जग
Read Moreमैं भी आग लगा सकता हूँ… पाकिस्तानी बस्ती में मैं भी कालिख मल सकता हूँ नेताओं की हस्ती में जो
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