बाल कविता – तुलसी
लाल – हरे तुलसी के पत्ते। लगते तीखे जब हम चखते।। कहती दादी अति गुणकारी। तुलसी-दल की महिमा न्यारी। वात
Read Moreलाल – हरे तुलसी के पत्ते। लगते तीखे जब हम चखते।। कहती दादी अति गुणकारी। तुलसी-दल की महिमा न्यारी। वात
Read Moreरात ठण्ड की बहुत बड़ी है, सहज नहीं है अधिक कड़ी है। ठण्ड सताए सही न जाए, और धूप भी
Read Moreगुरुजन, मात -पिता जन बच्चों को देते है संस्कार, जो बच्चा कहा हुआ माने वे ही बच्चे बनते है महान।
Read Moreगाँव शहर में अक्सर लगते हमने देखा है एक मेला । रंग,बिरंगी उस दुनिया में, पल भर भूले सारा झमेला।
Read More1 .चलती रही जिंदगी (क्षणिका) कभी गमों की धुंध कभी खुशियों की धूप कभी सफलता कभी विफलता हौसला और जुनून
Read Moreकल कल प्यारी नदिया बहती,चलते चलते वो कुछ कहती,झूम झूम के चलना है जीवन,पथ की बाधाएँ कभी न सहती। मेले
Read Moreशीत बढ़ी आ गई रजाई। मौसम ने ली है अँगड़ाई।। दादी अम्मा शी-शी करतीं। ओढ़ रजाई सर्दी हरतीं।। दिन में
Read Moreचूल्हे वाली रोटी खाएँ। अपना तन-मन स्वस्थ बनाएँ। बनी गैस की रोटी खाता। रोग धाम तन-मन बन जाता। उदर -रोग
Read Moreघास- फूस का नीड़ बनाकर, मेरे घर में रहती चिड़िया, दिन में दाना चुगती चिड़िया, रात में घर आ जाती
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