पीड़ा
पीड़ा; दिखती नहीं है, किन्तु अनुभव की जा सकती है— स्वयं को पीड़ित के स्थान पर रखकर । — महेन्द्र
Read Moreतू ही मेरी इबादत,तू ही मेरी इनायत,एक प्रच्छन्न-सी उम्मीद है,तेरे मिलने की,न भी मिल सके तो,न कोई गिला-शिकवा,न कोई शिकायत.—
Read Moreहमने वस्त्र की नग्नता पर विचार किया, किन्तु विचार की नग्नता का क्या? जो दिन-प्रतिदिन समाज में मानवता को चुनौती
Read Moreमेरे दिल के करीब है,ये बारिश का पानी।बारिश की हर बूंद,मुझसे कहती है मेरी कहानी।ये बारिश ही तो है,जो मुझे
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