क्षणिका
शांत हो जाओ ! मेरे मन में कमल की कलियांँ खिल रही हैँ | सुनो! सुनाओ ! चेतना प्रकाश का
Read Moreहैरान परेशान भटक रहा इस बियावान में ऐसे जैसे मृग फटकता फिरता जंगल जंगल खोजे उस कस्तूरी को छुपी हुई
Read Moreअक्सर आदतन/ तथाकथित बुद्धिजीवी / सुशोभित करते हैं / अपनी बुद्धिमता से/ चमचों और भक्तों की सीमाएं / और …इनकी
Read Moreचांद, तुम घुमंतु साहित्यकार हो या नहीं घुमंतु तो हो ही! कहीं टिककर रहना तो तुमने सीखा ही नहीं वैसे
Read More-1- चुनावी रण में दिखें/ शराब-शबाब हथियार/ पर… जागरूक मतदाता/ न करे वोट बेकार! -2- बैलट पर बुलेट/ है
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