पाषाण – उत्सव (व्यंग्य)
देश पाषाण युग की ओर लौट रहा है। पाषाण उत्सव मना रहा है। पत्थर में भगवान तलाशे जा रहे हैं
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Read Moreलाहौल विला कूवत! देश-धर्म के लिए मरने में भी कोई तुक है? मरना ही है, तो किसी अस्पताल में जाकर
Read Moreबड़े साहब के बंगले पर पहला बोला”साहब का कुत्ता हैं, तू तू तू वाला नही बल्कि बिल्कुल साहब के परछाई
Read Moreपार्टी की दुर्गति होते देख और जनता के बीच दुबारा से पकड़ बनाने के लिए चिन्तन जरूरी था। इसे “चिंतन
Read Moreपार्टी की दुर्गति लम्बे समय से हो रही थी। वह हर जगह दुत्कारी जा रही थी। हर जगह पार्टी को
Read Moreआज भला मुझे कौन नहीं जानता ,पहचानता।जो जानता वह तो मानता ही मानता और जो नहीं जानता वह तो और
Read Moreतेल लगाना एक ललित कला है. यदि आलोचकों ने इसे ललित कला में शामिल नहीं किया है तो भी यह
Read Moreयूँ तो नजर कई तरह की होती है जिसके निश्चित प्रकार गिने नहीं जा सकते, पर हाँ आज हम कुछ
Read Moreसंसार में ‘मार’ की विकट मार भी अनंत है।इससे नहीं बचा कोई संत या असंत है।जैसा उसका नाम है। वैसा
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