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जय विजय

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कविता
*सुधीर श्रीवास्तव 05/11/202006/11/2020

चिलमन

अब हया दिखती कहाँ है? रिश्तों में हया मर रही है, सिर्फ परदे के रुप में खिड़की दरवाजों पर ही

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कविता
डॉ. सदानंद पॉल 05/11/2020

दोस्ती में कुश्ती

आशा के आगे-पीछे कुछ भी धीमा नहीं है यह प्रीत के विन्यास पर आदतों के प्रसंगश: विग्रह निवेदित है !

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कविता
*सुधीर श्रीवास्तव 05/11/202006/11/2020

ठंढ के दिन आये

ठंढ का दिन धीरे धीरे आ रहा है, कंबल,रजाई, स्वेटर, जैकेट टोपी, मफलर अब निकलने लगे हैं। गाँवो में तो

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कविता
डॉ. सदानंद पॉल 05/11/2020

करतब करतल के साथ

आदत के समंजन से व्याघात जारी है, कुछ भी नहीं खाली है ! जहाँ हड़बड़ी है, वहीं गड़बड़ी है ।

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कविता
डॉ. सदानंद पॉल 05/11/2020

कहने को मन करता है

बहुत कुछ कहने को मन करता है, पर कामुक तन धन त्यागता है । यह प्रसंग लिए है, कुछ भी

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कविता
अमृता पान्डे 05/11/202006/11/2020

वार्तालाप सत्तर के आस-पास

कितनी जिद्दी हो चले हो तुम आजकल मेरी तो कोई बात नहीं मानते, सुबह सवेरे ये सारे खिड़की दरवाजे खोल

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कविता
डॉ. सदानंद पॉल 05/11/2020

सच कहना गुनाह है

हम न सच के करीब हैं, न सच कहना चाहते हैं, सच सुनना तो पसंद नहीं करते ! यही आग्रही

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कविता
डॉ. सदानंद पॉल 05/11/2020

लोग कहते हैं

लोग कहते हैं और यहाँ-वहाँ करते हैं मिलकर तय करते हैं फिर भी सन्नाटा है नहीं कोई आहट है, परंतु

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कविता
*ब्रजेश गुप्ता 05/11/2020

जुनून

ठान ले शख्स तो क्या नहीं कर सकता बस एक जुनून चाहिये पागलपन की हद तक वाला जुनून जुनून जो

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अन्य लेख
*ब्रजेश गुप्ता 05/11/2020

खटिया पुराण

कल मेरी बचपन के एक मित्र कुलदीप  से बात हो रही थी. हम दोनों राजकीय इंटर कॉलेज, एटा में साथ

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सम्पादक : डाॅ विजय कुमार सिंघल

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