चिलमन
अब हया दिखती कहाँ है? रिश्तों में हया मर रही है, सिर्फ परदे के रुप में खिड़की दरवाजों पर ही
Read Moreआशा के आगे-पीछे कुछ भी धीमा नहीं है यह प्रीत के विन्यास पर आदतों के प्रसंगश: विग्रह निवेदित है !
Read Moreठंढ का दिन धीरे धीरे आ रहा है, कंबल,रजाई, स्वेटर, जैकेट टोपी, मफलर अब निकलने लगे हैं। गाँवो में तो
Read Moreआदत के समंजन से व्याघात जारी है, कुछ भी नहीं खाली है ! जहाँ हड़बड़ी है, वहीं गड़बड़ी है ।
Read Moreबहुत कुछ कहने को मन करता है, पर कामुक तन धन त्यागता है । यह प्रसंग लिए है, कुछ भी
Read Moreकितनी जिद्दी हो चले हो तुम आजकल मेरी तो कोई बात नहीं मानते, सुबह सवेरे ये सारे खिड़की दरवाजे खोल
Read Moreहम न सच के करीब हैं, न सच कहना चाहते हैं, सच सुनना तो पसंद नहीं करते ! यही आग्रही
Read Moreलोग कहते हैं और यहाँ-वहाँ करते हैं मिलकर तय करते हैं फिर भी सन्नाटा है नहीं कोई आहट है, परंतु
Read Moreकल मेरी बचपन के एक मित्र कुलदीप से बात हो रही थी. हम दोनों राजकीय इंटर कॉलेज, एटा में साथ
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