कहानी

कहानी : दुल्ला

दुल्ला शराबी सारे गाँव में प्रसिद्ध था। वह एक नेक इंसान था। किसी की भी  मदद करने के लिए हर वक्त हाज़िर रहता था बस, एक बात उस की अच्छी नहीं थी, जब वह शराब पीता  तो गलियों में गिरता रहता। उस के कपड़े कीचड़ से गंदे हो जाते। बच्चे उन को इस हालत में देख कर कहकहे लगाते। पता नहीं, उस को क्या हो गया था, कौन सा ग़म दिल में छुपाए हुए था।
एक दिन गाँव के खंडहर हुए मंदिर के नज़दीक एक महात्मा आ कर रहने लगे. उन के गले में बहुत सी मालाएं पड़ी हुई थीं और हाथ में एक बड़ा सा चिमटा था जिस को, बजा कर वे कोई भजन गाते । धीरे-धीरे लोग उन के पास आने लगे और भजन कीर्त्तन होने लगा। लोगों ने महात्मा के वास्ते रहने के लिए एक झोंपड़ी बना दी। लोग अपने दुःखों का निवारण कराने के लिए आने लगे और रौनक होने लगी।
एक दिन बहुत-से लोगों के बीच महात्मा बैठे प्रवचन कर रहे थे कि दुल्ला शराब के नशे में झूमता हुआ पास से गुज़र रहा था कि महात्मा ने आवाज़ दी, “ऐ दुल्ला भगत ! काहे यह ज़हर पीता है रे ?”
दुल्ले ने टूटी हुई आवाज़ में जवाब दिया , “गुरु जी तुम भी पी कर देखो , सीधे स्वर्ग में चले जाओगे।” सुन कर सभी लोग हंस पड़े।
महात्मा जी बोले , “अच्छा तो हमारे लिए भी बोतल ला  देना, हम भी तेरे स्वर्ग के दर्शन करेंगे।
दूसरे दिन दुल्ला सचमुच एक बोतल ले आया और महात्मा को दे दी। महात्मा ने थोड़ी-सी शराब एक बर्तन में डाली और नज़दीक बैठे एक कुत्ते के सामने रख दी। पल भर के लिए कुत्ते ने शराब को सूंघा, फिर बुरा-सा मुंह बनाकर एक तरफ चल दिया। महात्मा बोले, “ऐ दुल्ले भगत ! हमें क्या पिला रहा था रे , इसे तो कुत्ते भी नहीं पीते!”
गुस्से में आ कर दुल्ले ने बोतल उठा कर बड़े ज़ोर से ईंटों पर फैंक दी। बोतल के टुकड़े-टुकड़े हो गए और दुल्ला वहां से भाग खड़ा हुआ। दूसरे दिन गाँव में बातें हो रही थी कि महात्मा ने दुल्ले की शराब छुड़ा दी है। महात्मा की जय जयकार  होने लगी।
दुल्ला गाँव छोड़ कर बहुत दूर एक शहर में आ गया। उस ने एक रेहड़ी पर छोले-टिकियां और समोसे आदि बेचने शुरू कर दिए। भाग्य ने उस का साथ दिया और उस का काम तेज़ी से बढ़ने लगा। कुछ ही वर्षों में उस ने रेहड़ी का काम छोड़ दिया और एक हलवाई की दूकान ले ली। पूरी लगन से दुल्ला मेहनत कर रहा था। लक्ष्मी की कृपा उस पर होने लगी थी, लेकिन महात्मा की तस्वीर हरदम उस के दिल में रहती थी, जिनकी कृपा  से वह इस मुकाम पर पुहँचा था।
एक दिन उस के मन में आई , क्यों न महात्मा के दर्शन कर आऊँ और उन की एक फोटो खींच कर लाऊँ और अपनी दूकान में लगाऊँ। गाड़ी लेकर दुल्ला रात के समय महात्मा जी की झौंपड़ी के पास पुहँच गया। एक सेवक जो दुल्ले को जानता था, झौंपड़ी के बाहर बैठा था। दुल्ले ने उस से महात्मा जी के बारे में पूछा, तो उस ने दरवाज़े की तरफ इशारा कर दिया। यों ही दुल्ला भीतर गया. वह हैरान हो गया। महात्मा एक चारपाई पर बैठे चिकन खा रहे थे। उन के आगे छोटी-सी मेज़ पर एक शराब की बोतल और गिलास पड़े थे।
दुल्ले को देख कर बोले , “ऐ दुल्ला भगत ! तू कहाँ चला गया था रे ? हमें तेरी बहुत याद आती है रे, हम तेरे स्वर्ग में रोज़ जाते हैं रे, लेकिन तू कहीं नहीं दिखाई देता रे , ले तू भी ले. ” और वह दुल्ले के लिए पैग बनाने लगे, लेकिन दुल्ले ने तेज़ी से दरवाज़ा खोला और गाड़ी में बैठ कर अँधेरे में गुम हो गया।

One thought on “कहानी : दुल्ला

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया कहानी. पर उपदेश कुशल बहुतेरे का उदहारण है यह. करारा व्यंग्य है उन तथाकथित महात्माओं पर!

Comments are closed.