राजनीति

सिसकता शिष्टाचार!

मैं शिष्टाचार हूँ. आज के दौर में मेंरी ऐसी हालत हो गयी है कि मै खुद ही बयान नही कर सकता। मेरा एक जमाना हुुआ करता था कि हम लोंगों के दिलो पर राज करते थे, वो गुजरा कल जब मुझे याद आता है तो हमारी आॅखों से झरनों की मानिन्द आॅसू निकलने लगते हैं. आज के जमाने के लोग मुझे अपने अपने घरों से निकाल रहे हैं. मेरा अस्तित्व समाप्त कर रहे हैं वर्तमान समय में मेरा हाल एक दम वैसा हो गया है जैसे कि लोग किसी पुराने कपडे को तकियों में ठूंस कर बन्द कर देते हैं. गुजरे जमाने में मैं इतना विशाल था कि समस्त आर्यावर्त मेरे वक्ष पर स्थित था, ये नदियाॅ पहाड़ हमारी भुजाएॅ हुआ करती थी, खुशी के सैकड़ो समुन्दर हमारे दिल में हिलोरें लिया करते थे, किन्तु अफसोस! आज हम अपने को इतना छोटा महसूस कर रहे हैं कि मुझसे छोटी वस्तु इस संसार में कोई नही है, आज के लोगों नें मूझे गुटखों के सैसे में बन्द कर दिया है, पान की पुड़िया में लपेट दिया है, सिगरेट की नली में मुझे जाम कर दिया है, जब कोई दोस्त अपनेे दोस्त से मिलता है, या कोई रिस्तेदार अपने रिस्तेदार के यहाँ जाता है तो सबसे पहले इन्ही मादक पादर्थो से उसका स्वागत किया जाता है. बडी- बडी पार्टियों में, शादी विवाह के शुभ अवसरों में मेंरी इज्जत का जनाजा निकाला जाता है आप इन्ही आॅखों से बखूबी देख सकते हैं।

मेरी ऐसी हालत क्यों हुई? आप लोग जानेंगे तो आप भी सोंचेगें कि इस संसार में कोई किसी का नही होता, मेरी दुर्दशा करने  वाला और कोई नही बल्कि अपना ही खून है यानी मेंरे तीन सगे भाई ,आज वो ही मेंर सीने में खंजर उतार रहे हैं मेंरे माँ बाप ने बडे ही शुभ मुर्हूत में सबका नामकरण किया था, लेकिन मुझे लगता है कि वो समय अशुभ था, मेंरा नाम शिष्टाचार रखा, दूसरे का नाम भ्रष्टाचार रखा, तीसरे का नाम अत्याचार रखा, और चौथे का नाम दुराचार रखा गया।

सब भाईयों में मै सबसे बडा था इसलिये मेरे पिता जीने मुझसे कहा था कि बेटा अपने छोटे भाईयों का ख्याल रखना, मैने तो अपना फर्ज पूरा किया, लेकिन आज मै खुद ही डरा सहमा हॅू, लगता है कि मै टी0 बी0 का मरीज हो गया हॅू, चलने फिरने की भी हिम्मत मुझमें नही है, बस पडे पडे दुनियाॅ के रंग देख रहा हॅू, और अन्दर ही अन्दर घुट रहा हूॅ, यह सांेच कर कि कल वैसा था और आज एैसा है, और न जाने कल कैसा होगा।

भ्रष्टाचार! ये कलमुहा मेंरा भाई है इसको देखतें ही मेेरे सीने मेें हजारों साॅप लोटने लगते हैं। क्या करूॅ मै विवश हॅू, कुछ कर भी नही कसता, क्योंकि बडे- बडे नेताओं और मंत्रियों के दिलो की धडकन है, नेताओं की छत्रछाया इस पे आठो पहर रहती है! फिर रहें भी क्यों ना! इसमें उनका ही फायदा है, इसलिये हर विभाग में इसकी जीती जागती मूर्ति लोगों में देखने को मिलेगी, इस तरह चैमुखी विकास इसका हो रहा है, कि आने वाले दिनों में हर चौराहे पर बडे- बडें शहरों से लेकर गाॅवों की मासूम गलियों में इसकी मूर्ति की स्थापना करवाई जायेगी, हर 15 अगस्त 26 जनवरी, को प्रधानमंत्री के कर कमलों द्वारा इसका माल्यापर्ण किया जायेगा, और ‘‘भ्रष्टाचारं परम् सुखम्’’ को राष्ट्रीय नारा घोषित किया जायेगा, जो सरकारी कर्मचारी इस नारें का पालन पूरी श्रद्धा और इमानदारी से नही करेगा उसे पूरी तरह से हिन्दुस्तानी बना दिया जायेगा, और उसको आतंकवादी घोषित करके फांसी पर लटका दिया जायेगा.

भ्रष्टाचार का नमूना अभी से देखनें को मिलता है, सड़कों में बिल्ड़िगों मेें, सामुदायिक केन्द्रोें में, अगर सड़क पर जा रहे हैं और उस सड़क पर गड्ढे मिलते हैं तो उनको गड्ढा न कहो गड्ढा कहने  पर तुम्हे दण्ड दिया जायेगा, वो गड्ढे नही हैं भ्रष्टाचार की तस्वीर है, हाॅ जीती जागती तस्वीर, अगर उनसे दुशमनी मांेल ली तो आगें के चार दाॅत वहीं गिर जायेगें, फिर भी नही समझे तो आगे बढोेगे तो कोई तस्वीर अपनी बाॅहों में कसे कहीं पर पड़ी होगी, अगर तुम्हारा राम नाम सत्य हो गया तो किसी को उपदेश नही दे पाओगे , अगर बच गये तो सबसे कहोगे  कि रास्ते में भईया की तस्वीर देखके जाना, इस भाई का जनम नेताओं से हुआ है, इस लिये बडा पावरफुल है, अगर नेता लोग या विचैलिये तारकोल नही पीते तो भाईयों ( गड्ढ़ों) की तस्वीर देखने को लोग तरस जाते.

उ0 प्र0 की राजधानी में फैजाबाद मार्ग पर बना ओवरफ्लाई ब्रिज सन 2009 की शुरूआती चरण में चरमरा के नीचे आ गया उसको नीचे आते ही सैकडो लोग उपर चले गये, उसके बाद जो करूण क्रन्दन हुआ उसमें सबसे बडा योगदान हमारे भाई भ्रष्टाचार का था, अगर भ्रष्टाचार न होता, न लोग सीमेन्ट न पीते, और न ही सरिया चबाते और न ही बो ब्रिज धरती को चूमता, और न ही सैकडों लोग नीचे से उपर जाते, और न ही आप लोग करूण क्रन्दन सुनने को पाते, फिर भी लोग इसे ईयर कन्डीशन रूम में बैठाते हैं इसकी पूजा करते है, चन्द लोग फलते फूलते हैं, बाकी बर्वाद हो जातें हैं।

अत्याचार ये तो मुवां आस्तीन का शाॅप निकला, हर गली में हर कूचें में इसका साम्राज्य ब्लड कैंसर की तरह सबकी नसों में पनप रहा है, दुनिया के समस्त अस्त्र सस्त्र में इसकी तस्वीर झलकती है, कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक इसका बोल बाला है, हमारे देश के कर्मठ एवं होनहार पुलिस एवं राजस्व विभाग के लेखपाल जैस अनेक महापुरूष इसके परम भक्त हैं, 24 जून 2009 में जिला बाराबंकी (देवां क्षेत्र का पेट्रोल पम्प मैनेजर सुशील कुमार) की पुलिस के अत्याचार से लड़ते लड़ते एक युवक की जान थाना प्रांगड में ही शहीद हो गयी, वैसे पुलिस वाले लोमड़ी की तरह चालाक होेतें हैं, लेकिन उस दिन कहीं धोखा गये, और हुआ ये कि उल्टा चोर कोतवाल को डांटे पुलिस वालों को थाना छोंड के भागना पडा, फिर क्या हुआ कभी सुना नही होगा, अरे भाई पुलिस के पीछे पुलिस पड़ी, ऐसा बहुत कम देखा गया हैं।

बहुत जल्द ही अत्याचार नामक एक राष्ट्री पार्टी का गठन किया जायेगा, और प्राईमरी से ही बच्चों  मेें एक पाठ दिया जायेगा, जिसका नाम होगा ‘‘अत्याचार खुला दरबार’’ ताकि आने वाले समय में पूरी तरह से सर्वांगीण विकास हो सके मेेरा क्या बची हुयी जिन्दगी आप लोगों को देख देख कर जी लेगेें।

दुराचार ओफ! ये तो इतना गन्दा नाम हो गया है कि इसका नाम जुबान पर आते ही मेंरी जुबान कट क्यों नही गयी, इसके कुकृत्य से तो सबकी नजरे झुक जाती है और सभी इसको कोशनें लगतें हैं, फिर भी लोग जितना इसे बद्दुआ देतें हैं उतना ही इसके लिये दुआ साबित होती हैं, इसका जीवन काल बढता ही जाता हैं, वैसे मै इसको बचपन से जानता हॅू, ये है बडा ही डरपोक अकेला तो ये कुछ कर नही सकता लेकिन जब इसको शराब का साथ मिल जाता है तो इसको मानों पर निकल आतें हैं, बलात्कार, लड़कियों की तस्करी जबरन किसी से कोई काम करवाना आये दिन अखबार वाले इसकी महिमा का बखान करते हैं, इससे हमको भी अहसास हो रहा हैं, कि बडा होनहार हो रहा हैं, एक दिन पूरे खानदान की नाक उॅची करेगा, और हर घर में एक दुराचारी महापुरूष होगा, न्याय पंचायत, एवं ग्राम सभा वार चुनाव होगा, जिसमें दुराचार को मुखिया बनाया जायेगा, और समस्त जनता इसके अधीन होगी।

हर कदम हर गली में भ्रष्टाचार, अत्याचार, दुराचार, की ही चर्चा है, मेरा नाम तो कोई भूल से भी लेना ही नही चाहता, मैने अपने जीवन में कोई कुकर्म भी नही किया तो ऐसी हालत मेंरी क्यों हो गयी है शिष्टाचार के उत्थान के लिये इस दुनिया में कोई मार्ग, राजमार्ग, रेलमार्ग, या कोई ऐसी जगह या अदालत है जो इन तीनों से महरूम हो तो बताओ मै जाऊॅगा, और अपनी अर्जी लगाऊॅगा, और कहॅूगा, मुझे न्याय दिलाया जाय। और मुझे फिर जिन्दा किया जाय, ताकि आने वाली नस्लों को गंगा जमुनी तहजीब के बारें में बताया जा सके, और उनको एक सांस्कारिक भारतीय बनाया जा सके।

राजकुमार तिवारी राज
बाराबंकी

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782

4 thoughts on “सिसकता शिष्टाचार!

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    राज कुमार जी , मेरा मन कहता है इस बुरे ज़माने की उलटी गिनती शुरू हो गई है . वक्त लगेगा सब ठीक हो जाएगा .

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा लेख. लेकिन वर्तनी की गलतियां बहुत हैं, जो खटकती हैं. कृपया सुधार करें.

  • भाई जी कृपया वर्तनी सुधारिए,,,,आप अच्छा लिखते हैं किन्तु लेख पब्लिश करने से पहले एक बार पढकर वर्तनी में सुधर किया कीजिये,,,,आग्रह है आपसे,,,निवेदन है !!

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