कविता

बरसो न मेघा ….

तने खड़े हैं
गुमसुम बादल
क्यूँ न बरसें

गर्मी से तप्त
भू पर जीव-जंतु
आस लगाये

जमीं का प्यार
समझें न बादल
हुए निष्ठुर

रोते किसान
बिन पानी फसल
न हो बुआई

बच्चे व्याकुल
गर्मी करे बेचैन
खुले हैं स्कूल

*********प्रवीन मलिक**********

प्रवीन मलिक

मैं कोई व्यवसायिक लेखिका नहीं हूँ .. बस लिखना अच्छा लगता है ! इसीलिए जो भी दिल में विचार आता है बस लिख लेती हूँ .....

4 thoughts on “बरसो न मेघा ….

  • विजय कुमार सिंघल

    आपने मौसम के अनुरूप अच्छी हाइकु लिखी हैं. बधाई.

    • प्रवीण मलिक

      विजय कुमार सिंघल जी आपका सादर धन्यवाद

  • जगदीश सोनकर

    हाइकू शैली में लिखी गयी ये कविता अच्छी हैं.

    • प्रवीण मलिक

      धन्यवाद आपका जगदीश सोनकर जी

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