कविता

एक हाइकु

प्राचीन समय में पुरुष अपनी पसंद की स्त्री का हाथ मांगते समय उसके पिता को तोहफे उपहार स्वरूप में देता था, ससुराल पक्ष न तो कोई मांग रखता था न ही दहेज़ को अपनी संपत्ति कह सकता था बट अब समय पूरी तरह बदल चूका है आज वर पक्ष मुहमांगे धन की अपेक्षा रखते है जिसके न मिलने पर स्त्री को मानसिक व शारीरिक प्रताड़ित किया जाता है

प्राचीन समय में शुरू हुई यह परम्परा आज अपने पूरे विकसित और घृणित रूप में हमारे सामने खड़ी है

naari

तुला में तुली
चढ़ी दहेज़ सूली
संस्कारी कली ।

….गुंजन

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*

6 thoughts on “एक हाइकु

  • गुंजन अग्रवाल

    तहे दिल से धन्यवाद विजय भाई

  • गुंजन अग्रवाल

    बहुत बहुत धन्यवाद गुरमेल अंकल जी जी मेरे उत्साह को बढ़ावा देने के लिए ….आभारी हु आपकी

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    गुंजन बेटा , कम लफ़्ज़ों में आप ने एक किताब ही लिख दी , इस से ज़िआदा मेरे पास भी शब्द नहीं हैं .

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी हाइकु. सार्थक बात !

  • गुंजन अग्रवाल

    dil se dhnywad di

  • ऋता शेखर 'मधु'

    सार्थक विचारणीय हाइकु…मर्मस्पर्शी !!

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