लघुकथा

झूठी पत्तल

“लोग झूठन ना छोड़ते तो हम इतने अच्छे और स्वादिष्ट भोजन का स्वाद कभी नहीं चख पाते |”, बरुआ ने चनिया से झूठी पतत्ल में से खाना बीन कर खाते हुए कहा |

किसी के घर में शादी, मरना या कोई पार्टी होती है तभी इन गरीब बच्चो को भर पेट स्वादिष्ट खाना मिलता है | वो भी उनकी छोड़ी हुई झूठन | जहाँ पर झूठी प्लेटे पत्तल फेंकते है वहां झुंड के रूप में बच्चेऔर जानवर एक साथ टूट पड़ते है| उन झूठी प्लेटो में से खाना बीन -बीन कर खाते है |

खाना बच जाने पर कूड़ा दान में डालना मंजूर है पर इन बच्चो को नहीं खिलाएंगे | ये हमारे समाज की रीति है |

शांति पुरोहित

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

6 thoughts on “झूठी पत्तल

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कहानी पड़ कर मन बहुत दुखी हुआ शान्ति बहन , गरीब अमीर में इतना अंतर पड़ सुन कर दिल को बहुत ठेस पौह्न्चती है . विजय भाई का सुझाव बहुत अच्छा लगा .

  • विजय कुमार सिंघल

    समारोहों में बचा हुआ खाना फ़ोन नंबर १०९८ पर सूचित करके उचित उपयोग के लिए भिजवाया जा सकता है. कहानी अच्छी है.

  • ऋता शेखर 'मधु'

    सही बात…समारोह के बाद बचा हुआ खाना कचरे पर देखना बहुत बुरा लगता है|

Comments are closed.