कविता

कृष्ण प्राणप्रिये (भाग ३)

कोमल तन कमल नयनों वाले

चितचोर बृज के नटखट ग्वाले

प्रेम का रस बरसाने वाले

राधा का मन भाने वाले

माखन मिसरी चुराने वाले

नैनो में नित्य समाने वाले

जागृत कर दो चेतना मेरी

भरदो मन के प्यासे प्याले!!

करुनासिन्धु कहलाते हो

सबके मन को बहलाते हो

माधव राधारमण मुरारी

जगदीश उपमाये सब पाते हो

टूटी फूटी जीवन नैय्या

तुम बिन नहीं और कोई खैवैय्या

उलझी उलझी मन शाखाएं

भ्रमित सी है कुछ मेरी कल्पनाएँ

आँखों के आगे तुम ना हो तो

कौन करे फिर नये उजाले

जागृत कर दो चेतना मेरी

भरदो मन के प्यासे प्याले!!
ध्यान में मैं तुमको पाता हूँ

नित ही नित तुमको ध्याता हूँ

तुम उज्जवल से नजर आते हो

फिर क्षण में ओझल हो जाते हो

बृज की गलियों में फिरता हूँ

नित ही नित सबसे घिरता हूँ

और तुम छिपते फिरते मुझसे

खेल भी करते अजब निराले

जागृत कर दो चेतना मेरी

भरदो मन के प्यासे प्याले!!
सूखा है घट मन का मेरे

और निराशा का तम है घेरे

कल्पनाओं की कदम डाली पर

रिक्त है सारी रस प्याली पर

मेघों के ही संग आ जाओ

बंजर भूमि पर छा जाओ

ये जग लगता हमको खारा

अब तो बरसा दो रस की धारा

जिन पैरो से आता मैं तुम तक

उनमे हाय पड़ गए हैं छाले

जागृत कर दो चेतना मेरी

भरदो मन के प्यासे प्याले!!

_______—सौरभ कुमार

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

3 thoughts on “कृष्ण प्राणप्रिये (भाग ३)

  • गुंजन अग्रवाल

    gazab

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अच्छी कविता सौरव जी .

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह ! जय श्री कृष्ण !!

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