कविता

शरद ऋतु

शरद ऋतु 

बर्फ की सिल्लियों सा
नभ में हैं
बादलों का प्रसार

शशि किरणें कर रही हैं
धरा पर शीत की बौछार्

झील में
मिश्री की डली सा
घुल गया हैं
पूनम का चाँद
मचल उठी हैं लहरें
तट से कर रही हैं
वे मनुहार

ओस से भींगी
रेत की सुडौल काया
सजीव हो गयी हैं
चित्ताकर्षक हैं उसका
अनुपम रूप जो
हुआ हैं अभी साकार

खुले गगन के झरोखों से
सकुचाये से
टिमटिमाते तारे भी
रहे हैं इस छटा को निहार

आओं मैं और तुम भी करे
आँखों आँखों से
शरारतों का इज़हार

बह रही हैं
चन्दन की महक लिए
नर्म दुशाले सी
सुखद शीतल बयार

सुध बुध खो चुकी
एक नाव के हाथों में
नहीं हैं पतवार
आगे हैं मंझधार

मोंगरे की पंखुरियों सी
धवल लग रही हैं निशा
चांदनी ने किया हैं श्रृंगार

आज फिर सरस हुआ हैं
शरद ऋतु का शालीन व्यवहार

किशोर कुमार खोरेन्द्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

2 thoughts on “शरद ऋतु

  • विजय कुमार सिंघल

    शरद ऋतु का अच्छा वर्णन किया है.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    किशोर भाई , बहुत सुन्दर कविता लिखी है .

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