कविता

बावरा– भाग २

बागी बागी इसके तेवर

क्रोध हुआ है मन का जेवर

आँखों में भड़के है शोले

और हृदय हैं आग के गोले

फन फैलाए अगर नाग भी

छोड़े इसके आगे झाग भी

ये ना इक क्षण को घबराया

इसलिए बावरा है कहलाया

 

ठौर ठौर पर शत्रु की सत्ता

जहर बन चूका पत्ता पत्ता

सांस हुआ लेना है दूभर

जी ना पाए मानव भू-पर

हर पल हर क्षण है अँधियारा

जैसे प्रकाश भी तम से हारा

ये ना इक क्षण को घबराया

इसलिए बावरा है कहलाया

 

रिश्ते टूटे हाथ हैं छूटे

अपनों ने अपने घर लूटे

मन से हारे सभी सहारे

सबको मिल मिल गए किनारे

पल पल रणसंग्राम है जीवन

बदल बदल आयाम है जीवन

ये ना इक क्षण को घबराया

इसलिए बावरा है कहलाया

 

मंजिल भूल गए जब राही

मची धूप में थी कोताही

छाँव छाँव को हर मन रोया

रो रो अपना जीवन खोया

आग के जब बरसे अंगारे

मानव जल जल गए थे मारे

ये ना इक क्षण को घबराया

इसलिए बावरा है कहलाया

 

विपरीत परिस्थिति में ले साहस

पी पीकर जीवन के सब रस

कालकूट को गले लगाया

ह्रदय से सबका साथ निभाया

मिला ना फिर भी सच्चा कोई

मन से आस नहीं पर खोई

ये ना इक क्षण को घबराया

इसलिए बावरा है कहलाया

 

____सौरभ कुमार

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

One thought on “बावरा– भाग २

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता. आपने इसके माध्यम से अपनी भावनाओं को खूबसूरती से व्यक्त किया है.

Comments are closed.