जब मै कविता पढ़ता हूँ
जब मै कविता पढ़ता हूँ
पत्ते पर बैठ कर चीटियों सा
नदी पार करने लगता हूँ ,..
जब मै कविता सुनता हूँ ,..
सीधे जडो में पहुँच जाता हूँ
फिर पानी की तरह शिराओ में
पहुँच कर
पत्तो की तरह हरा हो जाता हूँ
जब मै कविता के लिए शब्द चुनता हूँ
.तब दुःख सीढ़ियों से उतरने लगता है
इन्द्रधनुष की तरह
मेरे मन में उल्लास उभरने लगता है
.जब मै कविता लिखता हूँ
,कन-पटियों में गर्म लोहा पिघल कर ,.
.लेने लगता है विभिन्न आकार …
तब घास के दर्दो से चुभ जाते है मेरे पांव
जब मै कविता समाप्त करता हूँ .
कृष्ण की बांसुरी की सुनाई देती है
सूदूर से आती हुई मिट्ठी तान
किशोर कुमार खोरेन्द्र
मजेदार .
shukriya bahut