कविता

पूरे चाँद की रात

आज फिर पूरे चाँद की रात है ;

और साथ में बहुत से अनजाने तारे भी है…
और कुछ बैचेन से बादल भी है ..

इन्हे देख रहा हूँ और तुम्हे याद करता हूँ..

खुदा जाने ;
तुम इस वक्त क्या कर रही होंगी…..

खुदा जाने ;
तुम्हे अब मेरा नाम भी याद है या नही..

आज फिर पूरे चाँद की रात है !!!

3 thoughts on “पूरे चाँद की रात

  • रमेश कुमार सिंह ♌

    बहुत बढ़िया।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब .

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह ! अच्छी प्रेम कविता !

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