कविता

मेरे काव्य का चरित्र

 

स्मृति के पन्नों पर 
जब मैं पढ़ता हूँ अपना अतीत 
एक सपने की तरह वह 
होता है मुझे प्रतीत 

कभी वन के ,कभी उपवन के
कभी नदी के ,कभी परवत के
कभी सागर के ,कभी उद्गम के
कभी मरुथल के ,कभी निरझर के

 जाने लगा हूँ मैं अब करीब

गौर से मनुष्यों को भी देखने लगा हूँ
जान पाया हूँ तब-
इस जग से कितना था
मैं अब तक अपरिचित
हर किसी के पास
अपनी अपनी है तकलीफ
अपने अपने स्वभाव में उलझा हुआ लगा
प्रत्येक व्यक्ति मुझे अधिक

प्रकृति में ऐसी है कशिश
मनोरम दृश्यों को निहार कर
हो गया हूँ मैं
उनके प्रति आकर्षित
मेरा मन आप ही आप
रचने लगा है गीत
मुझे जब नज़र आने लगी
निस्तब्धता की काल्पनिक छवि
तब मैं बन गया कवि
पहाड़ से उतर कर
नदी की तरह तुम मुझे
आती सी लगती  हो

मुझ तक ,मेरे समीप 


सृजन के क्षणों में
यही सोचता हूँ कि –
संयमित और अनुशासित रहे
मेरे काव्य का चरित्र

मानों आईने के भीतर
सब कुछ हो रहा हो घटित
और लगता है –
मैं उसे विस्मय से
तस्वीरों की तरह
अवलोकन कर रहा हूँ
होकर आश्चर्यचकित
अपने ह्रदय के प्रेम को

किसे  करूँ मैं अब अर्पित
नींद नहीं आती है तब
तारों से कर लिया करता हूँ बातचीत
दिन के उजाले में….
मौन के निरूत्तर सायों की भीड़ में
हो जाया करता हूँ शरीक

मैं ही सर्जक ,
मैं अपनी ही
कविताओं का हूँ काव्य रसिक
ऐसा हूँ मैं एक अदीब
मेरे वैरागी जीवन का.
एकाकीपन ही है प्रतीक
स्मृति के पन्नों पर
जब मैं पढ़ता हूँ अपना अतीत
एक सपने की तरह वह
होता है मुझे प्रतीत

किशोर कुमार खोरेन्द्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

One thought on “मेरे काव्य का चरित्र

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    मज़ा आ गिया कविता पड़ कर .

Comments are closed.